नई दिल्ली, 6 अगस्त (आईएएनएस)। बांग्लादेश में हुए तख्तापलट का असर देखिए, लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई वहां की सरकार की मुखिया शेख हसीना को अपना देश छोड़कर भागना पड़ा। मिलिट्री लगातार उन्हें धमकाती रही। भारत अब इस तख्तापलट को कम से कम हल्के में तो नहीं लेगा, इसलिए लगातार यहां अधिकारियों और राजनेताओं की हाई लेवल मीटिंग चल रही है।
बांग्लादेश में हुए इस तख्तापलट (Coup took place in Bangladesh) पर भारत में भी दो पक्ष (Two parties in India also) आमने-सामने हैं। ऐसे में बांग्लादेश के अभी जो हालात हैं, वह ऐसे क्यों हुए, इस पर ध्यान देने और हाल के वर्षों में हुए कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को जानना जरूरी है। बांग्लादेश पिछले दो दशक में विकास के रास्ते पर चल निकला था। वह ‘विकास और हैप्पीनेस’ दोनों ही पैमाने पर बेहतर कर रहा था। फिर, ये विनाश का तांडव वहां कैसे हुआ?
बांग्लादेश से इस हिंसक विरोध प्रदर्शन की जो तस्वीर सामने आई, उससे तो साफ पता चल रहा था कि यह शेख हसीना के निरंकुश शासन के खिलाफ एक आंदोलन तो नहीं था क्योंकि यहां प्रदर्शनकारियों ने मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा तक तोड़ दी। शेख हसीना की पीएम हाउस में लगी तस्वीर को सेना के लोग उतारकर तोड़ रहे थे। सेना ने वहां सत्ता संभाली तो सबसे पहले बांग्लादेश की पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया को रिहा करने का आदेश दिया। शेख हसीना सत्ता में जब से आईं उसके बाद से लंबे समय से वहीं की पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया नजरबंद थीं। वह दो बार इस देश की प्रधानमंत्री रह चुकी हैं।
पूर्व पीएम बेगम खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का झुकाव हमेशा से इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरफ रहा है। जो हमेशा से पाकिस्तान की वकालत करते रहे हैं। खालिदा जिया के शासनकाल में यह देश आतंकवादियों की शरणस्थली बन गया था। ऐसे में अगर खालिदा जिया एक बार वहां फिर ताकतवर होती हैं तो बांग्लादेश का झुकाव पाकिस्तान और चीन की तरफ बढ़ेगा। भारत में जो पूर्वोत्तर के राज्य हैं, वहां सक्रिय आतंकवादी संगठनों को बांग्लादेश का प्रमुख आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन और बीएनपी, जो खालिदा जिया की पार्टी है, वह परोक्ष रूप से समर्थन देती है।
भारत में प्रतिबंधित आतंकी संगठन पीएफआई का सीधा संबंध बांग्लादेश के जमात-उल-मुजाहिदीन से रहा है। 2018 में बिहार के बोधगया में हुए ब्लास्ट में जमात-उल-मुजाहिदीन के आतंकी और बांग्लादेशी नागरिक जाहिदुन इस्लाम उर्फ कौसर को दोषी ठहराया गया था।
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री खालिदा जिया के शासनकाल में भारत और बांग्लादेश के रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे। खालिदा को हमेशा भारत के मुकाबले चीन और पाकिस्तान ज्यादा भाया। खालिदा के समय में बांग्लादेश के रिश्ते भारत के साथ हमेशा खराब रहे और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहते थे कि ‘आप मित्र तो बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं’। ऐसे में आपके पड़ोसी का व्यवहार आपको खुशियां भी दे सकता है और आपकी चिंता भी बढ़ा सकता है।
ऐसे में इस आंदोलन से प्रदर्शनकारियों की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, वह एक सोची-समझी साजिश की ओर इशारा कर रही हैं। यही कुछ अफगानिस्तान और श्रीलंका में भी देखने को मिला था, जहां चीन और पाकिस्तान की ताकतें ऐसा कर रही थी।
ढाका यूनिवर्सिटी के तीन छात्र नाहिद इस्लाम, आसिफ महमूद और अबू बकर ने बांग्लादेश में इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया। अब वही तीनों यहां की अंतरिम सरकार की रूपरेखा तय कर रहे हैं।
ऐसे में यह भारत के लिए चिंता का विषय है कि जिस देश को पाकिस्तान के दो टुकड़े कर भारत ने बनाया, अगर वहां पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, आतंकी संगठन और चीन की अन्य ताकतें मिलकर इस देश को चलाने लगेंगी तो भारत के लिए खतरा ज्यादा बढ़ जाएगा। बांग्लादेश हमारी गोद में बसा हुआ है उसकी तीन तरफ की सीमाएं हमारे देश से लगती हैं, वहां से भारत में प्रवेश भी आसान है, ऐसे में भारत में यही ताकतें आकर भारत को भी अस्थिर करने की कोशिश कर सकती हैं।
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