नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस)। साल था 1997 का और भारत अपनी आजादी के 50 साल पूरे कर रहा था। इस सब के बीच भारत के दो युग प्रवर्तकों को इस साल दुनिया में खूब सुना गया। ये थे महाश्वेता देवी और एम सी मेहता (Mahasweta Devi and MC Mehta)। महाश्वेता देवी साहित्यकार, उपन्यासकार, निबन्धकार के साथ ही समाज में अपनी रचनाओं के जरिए एक अलग विश्वास पैदा कर चुकी थीं तो दूसरी तरफ दुनिया में पर्यावरण बचाने को लेकर उठते शोर के बीच एक और मसीहा था जो इसके संरक्षक के तौर पर उभरकर सामने आया था नाम था एम सी मेहता।
फिर 1957 में उपन्यास ‘नाती’ मतलब कविता से शुरू करके कथा की तरफ मुड़ी महाश्वेता एकदम से पाठकों के दिलों में बस गईं। फिर क्या था उपन्यास पर उपन्यास और दर्जनों कहानी संग्रह महाश्वेता की कलम ने पन्नों पर उकेर दिए। बिरसा मुंडा से लेकर नक्सलवाड़ी तक सब इनकी कथा-कहानी के केंद्र में रहा। कहानी तो उन्होंने ऐसी बुनी की फिल्मी पर्दों पर भी इसे उतारना निर्माता-निर्देशकों की मजबूरी बन गई। उनके उपन्यास पर ‘रुदाली’ और ‘हजार चौरासी की मां’ जैसी फिल्मों का निर्माण हुआ। महाश्वेता को पद्मश्री, पद्मविभूषण, साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ और बंग विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
दूसरी तरफ थे भारत के हरित अधिवक्ता के नाम से मशहूर महेश चन्द्र मेहता! जो इस समय तक दूसरी तरफ सीसा रहित गैसोलीन शुरू करने, गंगा में औद्योगिक कचरे को नहीं डालने और ताजमहल को नष्ट होने से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। महेशचंद्र मेहता का 12 अक्टूबर, 1946 को जम्मू कश्मीर के राजौरी में जन्म हुआ था। साल 1983 का था जब एम सी मेहता ने एक सामाजिक कार्यकर्ता तथा फ्रीलांस लेखिका राधा से विवाह किया। दोनों ने मिलकर फैसला लिया और एम सी मेहता दिल्ली में सीधे सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने की सोच लेकर निकल गए। फिर क्या था दोनों पर्यावरण के खिलाफ हो रहे कामों को लेकर सक्रिय हो गए। पर्यावरण से जुड़े बेहतरीन कामों की वजह से ही उन्हें 1997 में मैग्सेसे पुरस्कार और 1996 में गोल्डमैन एनवायरमेंटल प्राइज तथा 2016 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया।
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