राजा साहब: दिलीप सिंह जूदेव जी की अमिट विरासत

जूदेव जी अक्सर मज़ाक में कहते, “दिनेश बाबू, दारू पिया करो।” जशपुर हो या राज कुमार कॉलेज का रेस्ट हाउस, उनसे मिलने पर यह जुमला ज़रूर सुनने को मिलता।

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  • Publish Date - August 14, 2025 / 01:19 PM IST

आज दिलीप सिंह जूदेव जी (Dilip Singh Judeo) की 12वीं पुण्यतिथि है। 14 अगस्त 2013 को उनका निधन हुआ था। अपने बड़े बेटे सतॄंजय सिंह जूदेव के दिल के दौरे से अचानक निधन के बाद, उन्होंने मानो जीवन में रुचि ही खो दी थी। यह ऐसा आघात था, जिससे वे पूरी तरह उबर नहीं पाए।

मेरा जूदेव जी से जुड़ाव सन 2000 में हुआ, जब मैं हिंदुस्तान टाइम्स में काम कर रहा था। शुरुआत से ही उन्होंने यह तय कर रखा था कि किसी भी विवाद या बड़ी खबर पर पहला बयान मुझे ही देंगे। 2003 में, जब उन पर कुख्यात रिश्वत कांड का आरोप लगा, तो सुबह 6 बजे उन्होंने मुझे फोन कर कहा कि मामला साफ होते ही वे सबसे पहले मुझे ही इंटरव्यू देंगे।

मुझे याद है, स्टार न्यूज़ में असाइनमेंट डेस्क पर मेरे पूर्व सहयोगी रजनीश का फोन आया था। उन्होंने बताया कि इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर जूदेव जी के रिश्वत मामले की खबर छपी है। यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। जो कोई भी जूदेव जी को जानता था, वह विश्वास नहीं कर पा रहा था। लेकिन वे अडिग थे और उनकी प्रतिक्रिया भी उतनी ही बेबाक— “पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा की कसम, खुदा से कम भी नहीं।”

जूदेव जी अक्सर मज़ाक में कहते, “दिनेश बाबू, दारू पिया करो।” जशपुर हो या राज कुमार कॉलेज का रेस्ट हाउस, उनसे मिलने पर यह जुमला ज़रूर सुनने को मिलता।

एक इंटरव्यू में, जब वे छत्तीसगढ़ में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि वे पक्के शायर हैं और सड़क किनारे दिख जाए तो शायरी की किताब ज़रूर खरीद लेते हैं। उनका पसंदीदा गीत था— मेरे देश की धरती सोना उगले…

जब मैंने पूछा कि क्या यह उनका पहला विवाद है, तो जशपुर के राजकुमार मुस्कुराए, मूंछों पर हाथ फेरते हुए बोले— “मेरी मूंछें भी मशहूर हैं और कॉलेज के दिनों में जो दो रिवॉल्वर लेकर चलता था, वे भी।”

कॉलेज के दिनों में उनके पास काली बुलेट मोटरसाइकिल थी, जिसे वे बेहद धीमी गति से चलाते थे, जैसे सफर का आनंद ले रहे हों। एक बार जिला प्रशासन ने उन्हें लोहरदगा में बीजेपी की बैठक में जाने से रोकने की कोशिश की। उस समय वे जीप चला रहे थे। उन्होंने कहा— “हम ज़रूर जाएंगे; अगर रोक सकते हैं तो रोक लो।” और फिर वे इतनी तेज़ी से निकले कि पुलिस की गाड़ियां पीछा नहीं कर पाईं।

सेंट ज़ेवियर्स से राजनीति विज्ञान में स्नातक जूदेव जी का परिवार भी राजनीति से जुड़ा था। उनके पिता राजा विजय भूषण सिंहदेव सांसद थे और खुले दिल के इंसान माने जाते थे। लेकिन जूदेव जी जिद्दी और दृढ़ निश्चयी थे। एक बार उन्होंने नई स्टैंडर्ड हेराल्ड कार लेने की ठान ली और पिता से दिलवाकर ही माने। उस कार पर उन्होंने “Jashpur-1” की प्लेट लगवा दी।

वे अपने ‘नीले खून’ पर गर्व करने वाले, रंगीन मिज़ाज के शख्स थे। उनके दोस्त उन्हें ‘कुमार साहब’ कहते और वे कभी उन्हें निराश नहीं करते थे। वे इतने उदार थे कि एक बार शर्त हारने पर अपनी कार भी दे दी। वन राज्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने दो दोस्तों— गोपाल प्रसाद और प्रकाश आनंद सिंह— को झारखंड में अपना आधिकारिक प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया।

जूदेव जी बेहतरीन निशानेबाज़ थे। मिट्टी के कबूतर ही नहीं, बल्कि तेंदुए और भालू का शिकार करने में भी माहिर थे।

वे अपनी पसंद-नापसंद के मामले में बेहद खास थे। कपड़े सिलवाने के लिए उन्होंने ‘धम्मी भाई’ नामक दर्जी तय कर रखा था। उनका गोल्ड प्लेटेड बेल्ट बकल और सोने की चेन उनकी पहचान बन चुके थे। वे अक्सर सफारी सूट या औपचारिक कपड़े पहनते थे।

उस दौर में वे बॉडी बिल्डिंग के भी शौकीन थे और शराब से पूरी तरह दूर रहते थे। उनके कद्रू स्थित तीन कमरों के घर में डंबल और बुलवर्कर रखे रहते थे। रोज़ कसरत करते और नौकरों से बॉडी मसाज करवाते। उन्हें गाय का दूध बेहद पसंद था।

दोस्तों और शुभचिंतकों के लिए जूदेव जी आज भी अमर हैं। राजा साहब बस स्वर्ग की ओर यात्रा पर गए हैं। उनकी शख्सियत, उनकी कहानियां और उनकी यादें हमेशा ज़िंदा रहेंगी।