छत्तीसगढ़। वास्तव में धनतेरस (Dhanteras) का उस धन सम्पत्ति से कोई सम्बन्ध नही है,जिसके विज्ञापनों से सारा बाजार ,सारा मीडिया पटा हुआ है। आज ही के दिन आयुर्वेदाचार्य एवं चिकित्सक धन्वन्तरि (Doctor Dhanvantari) का हुए थे इन्होंने ही वनस्पतियों से औषधियों निकालने की परिकल्पना को मूर्त रूप दिया था ।इसलिए ही इनके एक हाथ में अमृत कलश और दूसरे हाथ में वनस्पतियों से चिकित्सा या आयुर्वेद की अवधारणा की गई है ।
धन्वंतरि का जन्म त्रयोदशी के दिन होने के कारण इसे धन तेरस बोला जाता है। पर बढ़ते हुए वैश्विक बाजारीकरण एवं भौतिकतावाद की अंध दौड़ ने इसके रूप को गलत ढंग से प्रेषित किया है। और कुछ लोगों ने एक कदम आगे बढ़ कर इसे तारों ,ग्रहो नक्षत्रों को भी बाजार से जोड़ कर खरीदी, बिक्री के अनुकूल बता दिया धन्वंतरी ने औषधीय वनस्पतियों के ज्ञाता होने के कारण उन्होंने यह बताया कि समस्त वनस्पतियाँ औषधि के समान हैं उनके गुणों को जान कर उनका सेवन करना व्यक्ति के शरीर के अंदर निरोगिता लाएगा जो स्वस्थ रहने में सहायक है,इसीलिएअमृत भी कहा जा सकता है।
धन्वंतरि को वनस्पतियों पर आधारित आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही वनस्पतियों को ढूंढ ढूंढ कर अनेक औषधियों की खोज की थी। बताया जाता है ,इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने ‘शल्य चिकित्सा’ का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया ,जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे
सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे. उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) माने जाते हैं ,धन्वंतरि की स्मृति में ही इस दिन को “राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस” के रूप में भी मनाया जाता है। याद रहे, उत्तम स्वस्थ्य एवम निरोगी शरीर ही जीवन की अमूल्य पूंजी और धन का प्रतीक है इसलिए आज का दिन धनतेरस के रूप में जाना जाता है। ध्यान दें धनतेरस का इस प्रकार भौतिक सम्पत्ति, धनराशि, बहुमुल्य सम्पतियों, सोने चाँदी, वाहनों से कोई संबंध नहीं है।
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