Political Story : केजरीवाल मॉडल पर सियासी दलों में होड़! ‘कांग्रेस’ भी नक्शेकदम पर

By : madhukar dubey, Last Updated : May 21, 2023 | 5:10 pm

दिल्ली। वह दौर था, जब अन्ना हजारे के साथ अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) भ्रष्टाचार के खिलाफ में आंदोलनरत थे। पूरे देश में इनके आंदोलन की गूंज थी। लेकिन संगठन की नींव उस वक्त खड़ी नहीं थी। ऐसे में आम आदमी की सरकार दिल्ली में बनी। आप का दावा है, अगर कहीं BJP जैसे संगठन की आधारशिला होती तो शायद अरविंद केजरीवाल देश के प्रधानमंत्री होते। सन 2014 में वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा के चुनावी मैदान में अरविंद केजरीवाल कूदे। जहां उन्होंने 2 लाख से अधिक मत हासिल किए। उनके हारने के बावजूद उनके लिए एक बड़ी जीत थी। क्योंकि अरविंद केजरीवाल को जो भी वोट मिले थे, वह स्वफूर्त:।

खैर, दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनी। इसके बाद अरिवंद केजरीवाल ने जो विकास का मॉडल पेश किया। वह देश के लिए एक नजीर बन गया। ऐसे में भारत को नंबर एक बनाने का सपना दिखाने वाले अरविंद केजरीवाल न भारत के जनमानस में छाप छाेड़ रखी है। इसके पीछे कारण है, मुफ्त बिजली, बसों में महिलाओं के मुफ्त यात्रा, सरकारी स्कूलों को माडल बनाने की गूंज है।

दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने नि:शुल्क उच्चकोटि की शिक्षा देने का खाका खींचा। बड़े-बड़े घरानों के बच्चे बहुमंजिला इमारतों के वातानुकूलित कमरे में उच्चकोटि के शिक्षा लेते थे। ऐसी सुविधाएं केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों में सुलभ करा दी। इसके चलते अब गरीब के बच्चे भी सरकारी स्कूलाें में प्राइवेट स्कूलों जैसे संसाधनों के बलबूते और अच्छे शिक्षकों की बदौलत प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप कर रहे हैं। इनके इसी नक्शेकदम पर छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार भी आत्मानंद स्कूलों के जरिए केजरीवाल जैसी शिक्षा व्यवस्था की है।

इसी तरीके से स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिल्ली सरकार ने 200 प्रकार के रोगों की जांच नि:शुल्क सरकारी अस्पतालों में कर रही है। इतना ही नहीं केजरीवाल की सरकार बुजुर्ग तीर्थ यात्रा, फरिश्ते योजना जैसे अनेक जनकल्याणकारी योजनाएं बनाकर जनता के दिलों में जगह बनाई है। यही कारण है कि पूरे देश की जनता अपने-अपने राज्यों में अरविंद केजरीवाल जैसे विकास के मॉडल को चाह रही है।

यही वजह है पंजाब की जनता जब कांग्रेस और भाजपा से ऊब गई। बीते विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल सरकार को पंजाब की जनता ने प्रचंड बहुमत दिया। रही बात दिल्ली की तो वहां केजरीवाल के अभेद किले को तोड़ पाना किसी भी दल के लिए नामुमकिन है। गौर करें पहली बार दिल्ली में केजरीवाल को 27 सीटें मिली थी। इसके बाद दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को बहुमत की सरकार दी। इसके बाद केजरीवाल ने बीते विधानसभा चुनाव में गुजरात और गोवा में अपनी मौजूदगी का अहसास कराया।

हमेशा लाभ का दिल्ली में बजट पेश करने वाली केजरीवाल सरकार के माडल को अपनाने में कांग्रेस कर्नाटक नहीं चूकी। क्योंकि कर्नाटक सरकार ने अपने मैनोफेस्टो में मुफ्त बिजली सहित कई मुद्दे शामिल किए। इससे कहीं न कहीं भाजपा में बौखलाहट है। क्योंकि शुरू से ही दिल्ली की केजरीवाल और केंद्र सरकार में तालमेल नहीं होने के बावजूद अपने सीमित अधिकार के बूते वहां की जनता के दिलों में जगह बनाई। उस छाप को मिटाना भाजपा ही नहीं किसी भी पार्टी के लिए संभव नहीं है।

अब बदले देश के राजनीतिक माहौल में पार्टी का विस्तार देश के लगभग हर राज्यों में हो रहा है। आम आदमी पार्टी अपने संगठन को खड़ा करने के लिए जुटी है। जिसमें साफ-सुथरे छवि के लोगों को तरजीह दी जा रही है। आप को संगठन स्तर पर और जनता के बीच पैठ को देखते हुए बीजेपी ने केजरीवाल सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। ऐसे में केजरीवाल सरकार के दो मंत्री जेल में हैं। जिस आप का कहना है कि ईडी साजिश के तहत झूठे आरोप लगा रही है। आप का दावा है कि इसके पीछे कारण है कि आप की हर राज्यों में बढ़ रही पैठ।

बीजेपी ने रातो रात बदले अधिकारों को सीमित करने का खेल

आप पार्टी का आरोप है,  दिल्ली सरकार को ट्रांसफर और पोस्टिंग करने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने जायज ठहराया। कहा, दिल्ली सरकार को जनता के हितों को देखते हुए प्रशासनिक फेरबदल करने के अधिकार हैं। इस निर्णय के बाद जैसे बीजेपी को सांप सूंघ गया। फिर क्या था, रातों रात अध्यादेश लाकर दिल्ली सरकार के अधिकार को सीमित कर दिया गया। आप का आरोप है कि बीजेपी अपनी करारी हार का खुन्नस निकालना चाह रही है। इसलिए लोकतंत्र का गला घोंटने का काम कर रही है।

कर्नाटक की हार से सहमी BJP, इधर केजरीवाल भी एक्शन मोड में

हिमाचल चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता को भाजपा नजरअंदाज कर रही थी। लेकिन कर्नाटक की सफलता से भाजपा के कान खड़े हो गए हैं। 2024 को लेकर सियासत गर्म है। कहीं कोई साउथ भारत में उत्तर भारत से जाकर सियासी दल एकता के पैगाम देने में जुटे हैं। इसके केंद्र में सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी हैं। लेकिन मोदी फैक्टर से भी पार पाना आसान नहीं है तो नामुमकिन भी नहीं। ऐसे में सियासत में माहिर अरविंद केजरीवाल का रूख अब लोकसभा चुनाव को लेकर क्या होता है, यह आने वाले वक्त में ही पता चलेगा।

बहरहाल, पार्टी के अंदर संगठन को मजबूत बनाने की कवायद चल रही है। वहीं क्षेत्रीय दलों में आशंका है कांग्रेस और केजरीवाल का फैक्टर पूरे देश में चला तो क्षेत्रीय दल का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। यही वजह है कि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष एक मंच पर आने को तैयार नहीं है। शायद यही वजह रही होगी, कर्नाटक कांग्रेस के शपथ ग्रहण समारोह में सपा के अखिलेश और ममता का न पहुंचना। राजनीति के जानकारों के मुताबिक केंद्र में आप ही कांग्रेस-बीजेपी के बाद तीसरा विकल्प बन सकती है। लेकिन बीजेपी और कांग्रेस से पार पाने की केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

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