नई दिल्ली, 8 सितंबर (आईएएनएस)। अगर किस्मत में लिखा हो तो राजा रंक बन सकता है और रंक राजा। कुछ ऐसा ही दौर दूर देश के शहर पेरिस में चल रहा है। ओलंपिक के मंच पर जहां भारत (India) कभी तकदीर की मार, तो कभी नियमों का उलाहना दे अपनी नाकामियां छुपा रहा था। अब उसी मंच पर भारत अपना दबदबा दुनिया के सामने पेश कर रहा है। बस फर्क इतना है कि इस बार टूर्नामेंट पैरालंपिक (Tournament paralympic) है।
मजेदार बात यह है कि इस उम्दा परफॉर्मेंस की उम्मीद पैरा-एथलीटों से किसी ने नहीं की थी। या यूं कह लीजिए सभी ने उनको कम आंका। बेशक अंक तालिका पर यहां भी चीन, ग्रेट ब्रिटेन और यूएस का कब्जा हो लेकिन भारत भी टॉप-20 में शामिल है। चाहे बात सुविधा, बजट या खिलाड़ियों को मिलने वाले इनाम की हो, हर पैमाने पर ओलंपिक में खेलने वाले खिलाड़ियों का बोलबाला रहा है। इस बात का अंदाजा आप इससे भी लगा सकते हैं कि जितना खर्च भारतीय सरकार ओलंपिक के लिए करती है उसका 5-10 प्रतिशत खर्च पैरालंपिक पर नहीं होता।
उदाहरण के लिए (ओलंपिक का बजट 500 करोड़ है, तो पैरालंपिक पर यह बजट 20-30 करोड़ होगा। मगर, जब बात प्रदर्शन की हो तो इन पैरा एथलीटों ने खुद की काबिलियत दुनिया के सामने पेश की। टोक्यो में कुल 19 पदक के उम्दा प्रदर्शन के बाद पैरा-एथलीटों ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद से मौजूदा सरकार और भारतीय ओलंपिक संघ ने पैरा खिलाड़ियों को बेहतर सुविधा और ट्रेनिंग देने के लिए कई बड़े कदम उठाए। पीएम मोदी भी लगातार खिलाड़ियों से बात और उनकी हौसला अफजाई कर रहे हैं। इन तमाम कोशिशों की बदौलत आज भारतीय पैरा एथलीटों ने नई मिसाल कायम की।