क्रांति गौड़ की संघर्ष गाथा: नंगे पैर शुरू किया क्रिकेट, मां ने गहने बेचे, अब पाकिस्तान को हराया
By : dineshakula, Last Updated : October 7, 2025 | 3:27 pm
घुवारा, छतरपुर जिला, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के एक छोटे से गांव घुवारा से निकली महिला क्रिकेटर क्रांति गौड़ (Kranti Goud) की कहानी सच्चे संघर्ष की मिसाल है. 12 साल की उम्र में उन्होंने अपने घर के सामने सूखी और ऊबड़-खाबड़ जमीन पर नंगे पैर क्रिकेट खेलना शुरू किया था. पैरों में जूते नहीं थे, हाथ में पूरा क्रिकेट किट नहीं था, लेकिन हौसला और जुनून उनके पास था.
क्रांति छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. उनके माता-पिता रोज की ज़िंदगी चलाने के लिए संघर्ष करते थे. आदिवासी समुदाय से आने वाली क्रांति ने शुरुआत में गांव के लड़कों के साथ टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलना शुरू किया. वो बताती हैं कि शुरू में उन्हें क्रिकेट का ज्यादा ज्ञान नहीं था, बस खेलने का जुनून था. उनका पहला मैच लेदर बॉल से था.
आज वही क्रांति गौड़ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत की तरफ से पाकिस्तान के खिलाफ शानदार प्रदर्शन कर चुकी हैं. 5 अक्टूबर को खेले गए वनडे मैच में क्रांति ने 10 ओवर में 20 रन देकर 3 विकेट झटके. उन्होंने तीन मेडन ओवर भी फेंके और सिर्फ 2 की इकोनॉमी से गेंदबाजी की. इस प्रदर्शन के लिए उन्हें ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ चुना गया. क्रांति ने कहा कि यह पल उनके और उनके परिवार के लिए गर्व का क्षण है.
क्रांति ने अप्रैल 2025 में श्रीलंका में आयोजित वनडे त्रिकोणीय सीरीज से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया था. उन्हें असली पहचान इंग्लैंड दौरे में मिली जब 22 जुलाई को हुए मैच में उन्होंने 52 रन देकर 6 विकेट लिए और भारत को जीत दिलाई. उस समय उनकी उम्र 21 साल 345 दिन थी और वे भारत की सबसे कम उम्र की महिला खिलाड़ी बन गईं जिन्होंने वनडे में पांच विकेट लिए. उन्होंने यह रिकॉर्ड झूलन गोस्वामी को पीछे छोड़ कर बनाया.
क्रांति को अपने सफर में कई सामाजिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा. बुंदेलखंड जैसे पिछड़े इलाके में एक लड़की का क्रिकेट खेलना आसान नहीं था. लोग ताने मारते थे. साल 2017 में जब क्रांति एक इंटरस्टेट टूर्नामेंट देखने गईं, वहां उन्हें सागर टीम की ओर से खेलने का मौका मिला. यह लेदर बॉल से उनका पहला मैच था जिसमें उन्होंने 25 रन बनाए और 2 विकेट लिए. उन्हें ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ चुना गया. यहीं से उनके सफर ने रफ्तार पकड़ी.
इसके बाद उनकी मुलाकात छतरपुर के क्रिकेट कोच राजीव बिल्थरे से हुई. उन्होंने क्रिकेट सीखने की जिद की और पिता से कहा कि वे कोचिंग लेना चाहती हैं. उस समय घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी. पिता की नौकरी सस्पेंड हो गई थी, भाई की नौकरी नहीं थी और घर चलाना मुश्किल हो रहा था. तब क्रांति की मां ने अपने गहने बेच दिए ताकि बेटी क्रिकेट खेल सके. खाने के लिए लोगों से उधार लेना पड़ता था.
क्रांति बताती हैं कि बुरे वक्त में कोई साथ नहीं देता. उन्हें प्रैक्टिस पर जाना होता था तो पैसे नहीं होते थे. मां ने गहने बेचकर उन्हें टूर्नामेंट में भेजा. कोच राजीव ने उनके रहने, खाने और क्रिकेट सामान की जिम्मेदारी ली. उनके संघर्ष और मेहनत ने आज उन्हें देश की स्टार खिलाड़ी बना दिया है.
क्रांति गौड़ की कहानी बताती है कि संसाधन नहीं, बल्कि हौसला और मेहनत ही इंसान को आगे ले जाती है. आज वही लड़की जो कभी नंगे पैर खेलती थी, अब इंटरनेशनल क्रिकेट में बल्लेबाजों को डराने वाली तेज गेंदबाज बन चुकी है.




