नई दिल्ली, 9 सितंबर (आईएएनएस)। अकबर हुसैन (Akbar Husain), जो बाद में अकबर इलाहाबादी (Akbar Allahabadi)हो गए, उन्होंने अपनी शायरी में युवाओं की जिंदगी को बहुत ही खूबसूरती से बयां किया है। “छोड़ लिटरेचर को अपनी हिस्ट्री को भूल जा, शैख़-ओ-मस्जिद से तअल्लुक़ तर्क कर स्कूल जा, चार-दिन की ज़िंदगी है कोफ़्त से क्या फ़ायदा, खा डबल रोटी क्लर्की कर खुशी से फूल जा”।
उन्होंने यह भी कहा है कि युवा वर्ग को अपनी जिंदगी को स्कूल और क्लर्की तक सीमित नहीं रखना चाहिए, अपने सपनों को पूरा करना चाहिए। “चलो अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाएं, अपने अधिकारों के लिए लड़ें, नहीं तो गुलामी की जंजीरें हमेशा के लिए बंध जाएंगी।” अपनी कलम से अकबर इलाहाबादी ने अंग्रेजों के खिलाफ भी आवाज बुलंद की। उन्होंने अपनी शायरी में अंग्रेजों के अत्याचारों और उनकी दमनकारी नीतियों का जिक्र किया था। लोगों में देशभक्ति की भावना भरी। अंग्रेजों को चेताया कि वह भारतीयों को कमजोर न समझें उन्हें गुलामी की जंजीरें तोड़ना बखूबी आता है।
एक बेहतरीन शायर होने के साथ-साथ वह एक बेहतर इंसान भी थें। अपनी शायरी के माध्यम से वह इंसानों के बीच की दूरियों को मिटाना के लिए तत्पर रहते थे। शायरी में उन्होंने मोहब्बत की बातें की हैं और इसी के जरिए हिन्दुस्तान की तहज़ीब को दुनिया के सामने पेश किया है। शायरी ऐसी जो आज भी लोगों के दिलों में बसी है। महज 21 साल की उम्र में अकबर इलाहाबादी ने अपने पहले मुशायरे में दो लाइनें कही थीं। “समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का, अकबर ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का”। बड़ी ही सहजता और सरल अंदाज में गंभीर बातें कहने का हुनर क्या होता है ये बयां कर दिया।