नई दिल्ली, 21 फरवरी (आईएएनएस)। गुजरात में सत्ता की कमान संभालने से लेकर केंद्र में प्रधानमंत्री के तौर पर एक दशक पूरा करने तक के सियासी सफर में पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों के दांव पेंच से तो दो-चार तो होना ही पड़ा। लेकिन, इसके साथ ही उनको मीडिया के एक वर्ग की तरफ से हमले को भी झेलना पड़ा जो किसी न किसी बहाने उन पर तीखे प्रहार करता रहा। कभी मीडिया के शीर्ष ओहदों पर जमे पत्रकारों और लेखकों ने मोदी सरकार की नीतियों को अनावश्यक आधार बनाकर हमला किया तो कभी उनकी निजी आलोचना (Personal criticism) करने से भी परहेज नहीं किया।
मीडिया के दिग्गजों के इस वर्ग की तरफ से आलोचना स्वस्थ नहीं बल्कि किसी दुर्भावना से ग्रस्त ज्यादा लगती रही। पीएम मोदी भी ऐसी आलोचनाओं से डिगे बगैर अपनी नीतियों को अंजाम तक पहुंचाने में जुटे रहे। नकारात्मक लेखों और टीका टिप्पणी को दरकिनार कर राष्ट्र नीति पर अड़े नए भारत की सोच को परवान चढ़ाते रहे। 2014 से लेकर 2019 तक के कामकाज पर पीएम मोदी को फिर मिले भारी बहुमत ने ऐसे आलोचकों को करारा जवाब दिया। इसके बाद 2019 से लेकर अब चुनाव के मुहाने पर खड़ी मोदी सरकार के पास देश से तीसरा कार्यकाल मांगने का ठोस आधार है। राम मंदिर, चौतरफा विकास की बयार, अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रभाव से लेकर सामाजिक सरोकारों के सारे मुद्दों से प्रभावित देश की जनता के बीच पीएम मोदी को लेकर एक सकारात्मक माहौल है जो आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा को भारी वोटों में तब्दील होता नजर भी आ जाएगा।
पीएम मोदी के राज में सांप्रदायिकता को लेकर नैरेटिव बुनने की कोशिश करने वाले इन पत्रकारों को अब मोदी सरकार की ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ नीति नजर आ रही है। सोशल मीडिया पर और सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके बयानों से यह बदलाव साफ नजर आ रहा है। दिलचस्प बात यह है कि पीएम मोदी अपने निंदकों के इस वर्ग को ही संदेश देने के मकसद से कहते रहे हैं कि आलोचना तो लोकतंत्र का सबसे अहम अंग है। स्वस्थ आलोचना से तो सरकारें बेहतर नतीजे देती हैं। जाहिर है पीएम मोदी ने संदेश दिया था कि उन्हें आलोचना से कोई दिक्कत नहीं है। निजी हमले करने और हमेशा खामियां गिनाने वाले बुद्धिजीवियों के लिए यह संदेश किसी झटके से कम न था। मोदी की गारंटी और मोदी है तो मुमकिन है जैसे संदेश भी इस वर्ग पर असर कर गए।
आइये देखते हैं कि कैसे अब इनके विचार बदलते जा रहे हैं। पीएम मोदी की तीखी आलोचना करते रहे वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी ने हाल में उनकी तुलना ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर और दो से अधिक कार्यकाल तक सेवा करने वाले एकमात्र अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट से की। सांघवी ने अब नरेंद्र मोदी की तारीफ में लिखा कि मार्गरेट थैचर को जितना प्यार किया गया उतनी ही नफरत भी की गई लेकिन उन्होंने जनता का मूड और ध्यान हमेशा अपनी ओर खींचा।
वीर सांघवी तो अब साफ तौर पर मानने लगे हैं कि नरेंद्र मोदी का रथ अब सीधे तीसरे कार्यकाल की ओर बढ़ रहा है। ‘आयरन लेडी’ थैचर के साथ एक दिलचस्प तुलना करते हुए, वह कहते हैं कि वह एक ऐसी शख्सियत थीं जिनसे बहुत नफरत की जाती थी और साथ ही उन्हें प्यार भी किया जाता था, लेकिन आखिरकार उनको चुनौती देने वाला कोई भी उनकी लोकप्रियता का सामना नहीं कर सका। ‘मोजो स्टोरी’ शो में बरखा दत्त के साथ बातचीत में सांघवी ने हाल ही में कहा कि ‘कांग्रेस के भीतर बहुत गुस्सा और हताशा इस फर्जी धारणा पर आधारित है कि मोदी लोकप्रिय नहीं हैं, उनका जनता से जुड़ाव नहीं है। पीएम मोदी प्रकृति की शक्ति बन गए हैं, जिनकी लोकप्रियता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, खासकर उत्तर भारत में।’
वहीं पीएम मोदी की एक और कट्टर आलोचक और टीवी एंकर आरफा खानम शेरवानी जो अब उनका गुणगान कर रही हैं। आरफा ने हाल ही में अपने शो में गदगद होकर खाड़ी देशों में भारत की कूटनीतिक जीत और विदेशी धरती पर ‘भारतीयता’ के पुनरुत्थान के लिए मोदी सरकार की प्रशंसा की और इसे पीएम मोदी के व्यक्तिगत करिश्मा के तौर पर गिनाती नजर आईं। द वायर के एक शो के अपने वीडियो क्लिप में, वह कहती हैं कि “यह गर्व की बात है कि मध्य-पूर्व के देशों ने पीएम मोदी को अपना सर्वोच्च सम्मान दिया है” और खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों को फिर से लिखने के लिए उनकी सराहना भी की।
टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई को हमेशा मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए सभी ने देखा है और वह अक्सर इसी वजह से दक्षिणपंथी लोगों के निशाने पर भी आते रहे हैं। उन्हें हाल के जारी एक वीडियो में यह कहते हुए सुना जा सकता है कि उनका बेटा पीएम मोदी का बड़ा प्रशंसक है और उनके काम की खूब तारीफ करता है। ‘द लल्लनटॉप’ पर एक न्यूज प्रोग्राम में राजदीप कहते हैं कि उनका बेटा पीएम मोदी का बहुत बड़ा प्रशंसक है। राजदीप आगे कहते हैं कि मेरा बेटा हाल ही में जयपुर गया और उसने चार लेन वाली हाईवे देखी। उसके बाद वापस आकर उसने कहा कि देखो मोदी जी ने कितना बेहतरीन काम किया। जब मैंने कहा कि यह शहरी विकास और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के प्रयासों के कारण है, तो उसने ने कहा, नहीं, मोदी जी के कारण यह हुआ है। यह नई पीढ़ी है…
वहीं सेवानिवृत्त पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह तो पीएम मोदी और योगी आदित्यनाथ के धूर विरोधी रहे हैं, अब उनका भी हृदय परिवर्तन हो गया है। हाल ही में किसान आंदोलन को लेकर उन्होंने जमकर सोशल मीडिया पर आंदोलन करने वालों को खरी-खरी सुनाई है। वहीं विपक्ष को लेकर भी उन्होंने सोशल मीडिया पर जो लिखा है उससे साफ पता चल रहा है कि वह किस तरह से मोदी प्रशंसक बन गए हैं।
सिंह लिखते हैं कि पूरा विपक्ष खुद को छिन्न-भिन्न करने में लीन है, निराश है। मनोवैज्ञानिक रूप से चुनाव से पूर्व ही चुनाव हार चुका है। ऐसी परिस्थिति में मुस्लिम भाईयों को यह सोचना चाहिये कि आपने विपक्ष का इतने लंबे समय तक साथ दिया, बदले में आपको मिला क्या? आज भी उतनी ही अशिक्षा व मुफलिसी है, जितनी पहले थी। मुस्लिम नेताओं ने भी अपने घर ही भरे, मुस्लिमों को माकूल नेतृत्व प्रदान करने में असमर्थ रहे। आपको तय करना होगा कि विपक्ष आपको मोदी व आरएसएस का भय दिखाकर आगे भी ठगना चाहता है, तो क्या ऐसे ही ठगे जाते रहोगे या फिर डर से आगे भी कुछ देखोगे। आज भी आप विपक्ष के साथ रहकर सत्ता से बाहर ही रहना चाहते हो तो ये आपकी चॉइस है, तो मुझे कुछ नहीं कहना। सिक्के के दूसरे पहलू को भी बिना डरे एक बार देखो तो सही, हो सकता है आपको बेहतर विकल्प मिले। नदी के दूसरे छोर पर कब तक खड़े रहोगे, नदी पार कर इस किनारे पर भी नज़र डालो, शायद कुछ अच्छा दिखे।
इसके साथ ही प्रसिद्ध भारतीय अमेरिकी पत्रकार फरीद जकारिया पीएम मोदी को जवाहर लाल नेहरू के बाद सबसे बेहतरीन प्रधानमंत्री के रूप में उभरते हुए देखते हैं। उनका कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी गांधी परिवार, डॉ. मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव के विपरीत एक सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं और यह देश की बड़ी आबादी के साथ मेल खाता है। इसके अलावा, जकारिया कहते हैं कि पीएम मोदी ने न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी ‘भारत के गौरव’ को समझा है और उसके साथ खड़े हैं।
वहीं इन सबके अलावा कई ऐसे नाम हैं जो अब इस लाइन में धीरे-धीरे आ गए हैं इनमें शेखर गुप्ता, विक्रम चंद्रा, तवलीन सिंह, शाह फैसल, रईस मट्टू, फारूक अब्दुल्ला, शशि थरूर, टीएस सिंह देव और गुलाम नबी आजाद जैसे बुद्धिजीवी भी शामिल हैं जो पहले से ही पीएम मोदी के काम और उनकी सोच के घोर विरोधी रहे हैं।