रायपुर। यह कहानी है सुशीला और जयमती की।(This is the story of Sushila and Jaymati) दोनों देश के अलग-अलग हिस्सों में सक्रिय थीं नक्सली के तौर पर वह पूरी तरह से नक्सली गतिविधियों में शामिल थीं(She was fully involved in Naxalite activities) और भारतीय व्यवस्था पर इनको कतई विश्वास नहीं था। लेकिन पिछले कुछ सालों ने उनकी जिंदगी पूरी तरीके से बदल दी है।
सुशीला उड़ीसा मलकानगिरी इलाके में सक्रिय थीं।जबकि जयमती छत्तीसगढ़ बीजापुर इलाके में अपनी गतिविधियां चल रही थीं। दोनों ही 2006 के आसपास नक्सलियों के अलग-अलग काडर में शामिल हुईं थीं। जिस वक्त दोनों शामिल हुईं उनकी उम्र करीब 15 साल के आसपास थी। मीडिया ने जब उनसे बात की तो इन्होंने बताया कि उनके हालात का फायदा उठाकर नक्सलियों ने उन्हें अपने काडर में शामिल करवाया।
इसके बाद इन पर लगातार दबाव बनाए जाने लगा कि जहां-जहां नक्सली जाएं भारतीय सुरक्षा बलों के खिलाफ लोहा लें, उनकी गतिविधियों में शामिल हों। इसी से तंग आकर उड़ीसा मलकानगिरी में सक्रिय सुशीला ने कुछ सालों पहले आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन जयमती की कहानी थोड़ा और आगे बढ़ी और 2016 तक वह हिंसक गतिविधियों में लिप्त रहीं। जयमती के मुताबिक 2016 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद इन दोनों महिलाओं की जिंदगी का एक अलग अध्याय शुरू होता है। दोनों महिलाएं जो कि पहले नक्सलियों की दुर्दांत काडर थीं। अब वह सुरक्षा बलों का हिस्सा बन गईं यानी कि उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस की डीआरजी का हिस्सा बना लिया गया। जयमती पर 5 लाख और सुशीला पर 10 लाख का इनाम था। अब ये दोनों छत्तीसगढ़ पुलिस के डीआरजी स्क्वायड का हिस्सा हैं। यह छत्तीसगढ़ पुलिस की वह टुकड़ी है, जो मौजूदा समय में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन में शामिल हैं।
नक्सलियों ने बना दिए थे कुछ ऐसे हालात कि सुशीला मलकानगिरी इलाके में सक्रिय थी जबकि जयमती बीजापुर इलाके में सक्रिय थी। दोनों ने सरेंडर किया और अब वह नक्सलियों के खिलाफ लोहा ले रही हैं। सुशीला और जयमती ने बताया कि छत्तीसगढ़ पुलिस का हिस्सा बनकर अब वह नक्सलियों के खिलाफ लोहा ले रही हैं। इनका कहना है कि नक्सलियों ने परिस्थिति ही ऐसी बनाई थी कि बचपन से वह अपने गांव के बाहर ना निकल पाएं और नक्सली गतिविधियों में शामिल होने पर मजबूर हो जाएं।
ऐसा ही कुछ उनके साथ भी हुआ और एक बार जब यह शुरू हुआ कुचक्र तो फिर टूटा नहीं। लेकिन, अब अपनी नई भूमिका को लेकर संतुष्ट हैं। दोनों का कहना है कि मुख्यधारा में शामिल होने के बाद अपने परिवार की जरूरत को पूरा तो कर रही हैं साथ ही देश के विकास में भी भूमिका अदा कर रही हैं।
ऋषिकेश तिवारी अपर कलेक्टर बस्तर के मुताबिक सरेंडर कर चुके नक्सलियों के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। जिसमें बड़ी संख्या में विकास कार्यक्रम भी शामिल हैं। इनका कहना है कि युवाओं को रोजगार के प्रति आकर्षित कर उनको नक्सलियों की इस गतिविधि से रोका गया है।
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