रायपुर। (Bharatmala project corruption) कहते हैं कि भ्रष्टाचार की परतें प्याज की तरह होती है, जितना छिलेंगे उतना निकलेगा। कुछ यही हाल भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बांटे गए हजारों करोड़ रुपए की मुआवजा राशि में भ्रष्टाचार उजागर हो रही है। मीडिया को मिले दस्तावेजों से अफसरों और दलालों की मुआवजा राशि हड़पने (Robbery of compensation amount) की जुगलबंदी ने सभी को चौंका कर रख दिया है। पैसे की भूख में अधिकारियों ने अकूत संपत्ति बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। एेसे में इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए और इसमें दोषी अधिकारियों और दलाल तथा रसूखदारों की संपत्ति को बेचकर उसका पैसा सरकारी खजाने में जमा हो। और उसका जो वाजिब हकदार हो, ये दिया जाना चाहिए। इस पूरे घोटाले को अंजाम देने वाले रक्षक ही जनता के हकों पर डलाने वाले भक्षक की भूमिका में हैं। अलग-अलग खसरा नंबर में भी एक तरह का मुआवजा दे दिया गया। सिर्फ नायकबांधा गांव में ही 51 बार 95 लाख 95 हजार 520 रुपए मुआवजा देने का उल्लेख है। इसी तरह इसी गांव में 36 बार 71 लाख 96 हजार 640 रुपए मुआवजा दिया गया है। जबकि उनकी जमीन अलग, खसरा नंबर अलग और मालिक भी अलग-अलग हैं।
जमीनों का बटांकन कर मुआवजे को बढ़ाने के खेल में ही एक जैसी राशि का मामला सामने आया है। यह खेल टोकरो गांव में बड़े पैमाने पर देखने मिलता है। यहां 23 लाख 98 हजार 880 रुपए की राशि 14 बार और 29 लाख 98 हजार 600 रुपए की राशि 15 बार मुआवजे के रूप में दर्ज है। इससे स्पष्ट है कि अफसरों और भूमाफियाओं ने सुनियोजित ढंग से जमीनों के एक जैसे टुकड़े किए और एक जैसा मुआवजा वितरित किया।
95 लाख 95 हजार 250 रुपए मुआवजा के अधिकतर मामलों में रकबा 0.400 है, लेकिन एक प्रकरण ऐसा भी है, जिसमें इतने ही रकबे में 99 लाख 63 हजार 512 रुपए मुआवजे का भुगतान किया गया है। नायकबांधा गांव के ही एक अन्य मुआवजा प्रकरण में 0.300 हेक्टेयर भूमि में सिर्फ बोर होने की वजह से 1 करोड़ 29 लाख 17 हजार 500 रुपए मुआवजा दिया गया है।
नायकबांधा गांव में 95 लाख 95 हजार 520 रुपए की राशि जिन प्रभावितों को दी गई, उनमें पुखराज गांधी, बिंदु शर्मा, बॉबी गुलाटी, दुर्गा अग्रवाल, सुनील ओगरे, रोशन चंद्राकर, फुलचंद पिता बुधराम, प्रेमलाल पिता बुधराम, परमानंद पिता छोटूराम, शोभित पिता छोटूराम. भूपेंद्र चंद्राकर, रोशन चंद्राकर, अमित राठी पिता लक्ष्मीनारायण राठी समेत कई नाम हैं, जिन्हें अलग खसरा के बाद भी एक जैसी राशि मिली।
ग्रामीण दबी जुबान में कहते हैं कि अधिग्रहण से पहले ही दलाल गांव में एक्टिव हो गए थे। किसानों से संपर्क किया और उन्हें कई गुना ज्यादा मुआवजा दिलाने के लिए तैयार किया। इसके बाद अफसर और दलालों ने मिलकर जमीन के मुआवजे में खेल किया गया है। हालांकि किसान यह भी कह रहे हैं कि उन्हें उतना मुआवजा नहीं मिला जितना कागजों में दिखाया गया है। बिचौलियों और अफसरों ने रकम में बंदरबांट की है।
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