रायपुर। (Reservation) आरक्षण पर सियासी घमासान मचा हुआ है। जिसे लेकर भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) पूरी तरह से एक्शन में हैं। इसके पीछे कारण भी उन्होंने आरक्षण बिल को विधानसभा में पारित कराया। इसके बावजूद राज्यपाल ने 10 सवाल पूछे तो इसके जवाब भी दे दिए गए। फिर उन्होंने विधिक सलाहकार के हवाले आरक्षण बिल कर दिया। जब इंतजार की इंतहा हो गई तो मामला हाईकोर्ट चला गया। जहां राजभवन से जवाब मांगा गया है।
मंगलवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, राज्यपाल अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही हैं। उन्होंने कहा, विधानसभा से पारित बिल पर सरकार से सवाल करने का राज्यपाल को अधिकार ही नहीं है। सरकार की याचिका पर एक दिन पहले उच्च न्यायालय ने राजभवन से जवाब मांगा है।
राज्य सरकार ने आरक्षण विवाद के विधायी समाधान के लिए छत्तीसगढ़ लोक सेवाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण अधिनियम में संशोधन करने का फैसला किया।
शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए भी आरक्षण अधिनियम को भी संशोधित किया गया। इसमें अनुसूचित जाति को 13%, अनुसूचित जनजाति को 32%, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27% और सामान्य वर्ग के गरीबों को 4% आरक्षण का प्रावधान किया गया।
तर्क था कि अनुसूचित जाति-जनजाति को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया गया है। OBC का आरक्षण मंडल आयोग की सिफारिशों पर आधारित है और EWS का आरक्षण संसद के कानून के तहत है।
इस व्यवस्था से आरक्षण की सीमा 76% तक पहुंच गई। विधेयक राज्यपाल अनुसूईया उइके तक पहुंचा तो उन्होंने सलाह लेने के नाम पर इसे रोक लिया। बाद में सरकार से सवाल किया। दो महीने बाद भी उन विधेयकों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं।