BIG CG STORY : सीआरपीएफ के सामने आने से क्यों बच रहे नक्सली
By : hashtagu, Last Updated : May 7, 2025 | 7:01 pm

आखिरी लड़ाई में कदम-कदम पर बिछा दिया बारूद
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ व तेलंगाना बॉर्डर(Chhattisgarh and Telangana border) सहित दूसरे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सीआरपीएफ(CRPF) एवं दूसरे सुरक्षा बलों की पकड़ मजबूत होती जा रही है। नक्सलियों के शीर्ष कमांडरों के ठिकानों को ध्वस्त किया जा रहा है। सुरक्षा बलों की मौजूदगी से अब नक्सलियों की कोर टीम को एक जगह से दूसरी जगह भागना पड़ रहा है। सूत्रों के मुताबिक, अब नक्सली, सुरक्षा बलों के सामने आने से कतरा रहे हैं। वे सीधी मुठभेड़ से बच रहे हैं। अब जितने भी नक्सली बचे हैं, उन्होंने जंगलों में अपने ठिकानों के आसपास और ऐसे मार्ग, जहां से सुरक्षा बलों की आवाजाही होती है, वहां कदम-कदम पर बारूद बिछा दिया है। वे प्रेशर इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) के जरिए सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के बीजापुर और तेलंगाना बॉर्डर के करेगुट्टा पहाड़ी क्षेत्र में जगह जगह पर आईईडी लगाई गई हैं। यहां पर सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के ठिकाने तो ध्वस्त कर दिए, लेकिन अभी तक टॉप नक्सली, गिरफ्त में नहीं आ सके। सूत्रों का कहना है कि नक्सली, तेलंगाना के जंगलों की तरफ निकल गए हैं।
पिछले कई दिनों से सीआरपीएफ कोबरा के जवान, टॉप नक्सली हिडमा के ठिकाने केजीएच हिल्स को ध्वस्त करने में लगे हैं। नक्सलियों ने केजीएच हिल्स के चप्पे-चप्पे पर आईईडी लगा रखी हैं। शनिवार को कोबरा 204 बटालियन के जांबाज ग्राउंड कमांडर (सहायक कमांडेंट) सागर बोराडे, आईईडी विस्फोट में घायल एक जवान को बाहर निकाल रहे थे, तभी वहां एक दूसरा आईईडी ब्लास्ट हो गया। उसमें जांबाज ग्राउंड कमांडर, सागर बोराडे बुरी तरह जख्मी हो गए। उन्हें एयर एंबुलेंस के जरिए दिल्ली स्थित एम्स में भर्ती कराया गया है। उनका एक पैर शरीर से अलग हो चुका है। फिलहाल उनकी हालत स्थिर है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को जड़ से खत्म कर दिया जाएगा। इसके लिए शाह, सुरक्षा एजेंसियों के साथ लगातार संपर्क में हैं। छत्तीसगढ़ सहित दूसरे राज्यों में सुरक्षा बलों के नए कैंप और फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (एफओबी) स्थापित किए जा रहे हैं। अभी तक 200 से अधिक नए कैंप स्थापित हो चुके हैं। ऐसे में नक्सली बौखला चुके हैं। उन्हें ठिकाने बर्बाद किए जा रहे हैं। सीआरपीएफ सहित विभिन्न सुरक्षा बलों के हाथ तेजी से उनकी तरफ बढ़ रहे हैं। इसके चलते नक्सलियों के सामने नई भर्ती का भी संकट खड़ा हो गया है। उनके सामने आर्थिक संकट भी गहराता जा रहा है। अनेक जगहों पर नक्सलियों की सप्लाई चेन को भी खत्म कर दिया गया है।
नक्सली बैकफुट पर आ गए
छत्तीसगढ़ के बीजापुर और तेलंगाना बॉर्डर के करेगुट्टा पहाड़ी क्षेत्र में सीआरपीएफ के नेतृत्व में जो ऑपरेशन चलाया गया, उसके बाद से नक्सली बैकफुट पर आ गए हैं। उन्होंने सीआरपीएफ सहित विभिन्न बलों के संयुक्त ऑपरेशन को तुरंत प्रभाव से रोकने की मांग की है। उत्तर पश्चिम सब जोनल ब्यूरो, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के प्रभारी रूपेश ने एक पत्र जारी किया था। इसमें कहा गया है कि बीजापुर-तेलंगाना सीमा पर एक बड़ा सैन्य अभियान लांच किया गया है। इस अभियान को तुरंत रोकना चाहिए। सभी बलों को वापस बुला लेना चाहिए। सभी लोग चाहते हैं, समस्या का समाधान शांति वार्ता के जरिए हो। शांति वार्ता के लिए हमारी पार्टी हमेशा तैयार है। सरकार दमन व हिंसा के प्रयोग से समस्या का समाधान के लिए प्रयास कर रही है। इसी का नतीजा है, बीजापुर व तेलंगाना सीमा पर बड़ा सैन्य अभियान लांच किया गया है। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वार्ता के जरिए समस्या हल करने का रास्ता अपनाए।
सूत्रों का कहना है कि अब जहां भी नक्सली बचे हैं, वे आईईडी ब्लास्ट का सहारा ले रहे हैं। उनके लिए आमने-सामने की लड़ाई संभव नहीं रही। जंगल और पहाड़ों पर सैंकड़ों आईईडी लगाई गई हैं। नक्सलियों की कोशिश है कि किसी भी तरह से सुरक्षा बल या उनका जवान, आईईडी की चपेट में आ जाए। मकसद, वे किसी भी तरह से अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि सुरक्षा बलों के साथ सीधी लड़ाई में वे बच नहीं सकेंगे। इसी वजह से माओवादी, आईईडी ब्लास्ट पर ही ज्यादा फोकस कर रहे हैं। इसे किसी भी जगह पर दबा दिया जाता है। अगर प्रेशर आईईडी है तो जवान या अधिकारी का पैर पड़ते ही वह फट जाती है।
दूसरा, कोई भी दूर बैठा व्यक्ति इसे संचालित कर सकता है। सीआरपीएफ द्वारा गत वर्षों में हजारों आईईडी/टिफिन बम बरामद किए गए हैं। ब्लास्ट मामलों की जांच करने वाले एक बैलिस्टिक एक्सपर्ट कहते हैं कि कुछ वर्षों से नौसिखिये आतंकी और नक्सली आईईडी/टिफिन बम का इस्तेमाल करने लगे हैं। कश्मीर, पंजाब, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों या उत्तर पूर्व में जितने भी राष्ट्र विरोधी समूह सक्रिय हैं, अब वे सीधे तौर पर सुरक्षा बलों के साथ टकराने से बचने लगे हैं। अगर कहीं पर एंबुश (घात लगाकर हमला करना) होता है तो भी उसमें विस्फोटकों का ही अधिक इस्तेमाल होता है। सीधी मुठभेड़ में उन्हें सुरक्षा बलों के हाथों भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इसके चलते अब माओवादी संगठन, आईईडी विस्फोट तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भारी संख्या में ऐसे ही आईईडी विस्फोटक तैयार कराए जा रहे हैं।
सुरक्षा बलों के अधिकारी भी यह बात मानते हैं कि अब सीधी मुठभेड़ का दौर खत्म हो चला है। आईईडी तकनीक के द्वारा लगभग सौ मील दूर बैठकर विस्फोट किया जा सकता है। ऐसे में नक्सली, सुरक्षा बलों के सामने मरने के लिए क्यों आएंगे। जंगल या पहाड़ पर ज्यादातर, प्रेशर आईईडी ही इस्तेमाल में लाई जाती हैं। आईईडी विस्फोट करने में टाइमिंग बहुत अहम प्वाइंट है। एक्सपर्ट व्यक्ति ही इसे सुरक्षित तरीके से ब्लास्ट कर सकता है। भले ही देश में उच्च विस्फोटक जैसे आरडीएक्स/पीईटीएन आसानी से नहीं मिलते हैं, लेकिन कम क्षमता वाले विस्फोटक पोटाशियम, चारकोल, आर्गेनिक सल्फाइड, नाइट्रेट और ब्लैक पाउडर आदि से आईईडी और टिफिन बम तैयार कर लिए जाते हैं। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में यही हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में तो पीडब्लूडी एवं माइनिंग विभाग, कई तरह के विकास कार्यों में जिलेटिन स्टिक का इस्तेमाल करते हैं। इसकी मदद से इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस आईईडी, टिफिन बम और दूसरे तरह के प्रेशर बम तैयार किए जा सकते हैं।
आईईडी को रिमोट कंट्रोल, इंफ्रारेड, मैग्नेटिक ट्रिगर्स, प्रेशर-सेंसिटिव बार्स या ट्रिप वायर की मदद से संचालित किया जाता है। कम आयु के नक्सलियों को रिमोट कंट्रोल से ही आईईडी विस्फोट करने की ट्रेनिंग दी जाती है। प्रेशर कूकर बम कैसे तैयार होता है, ये भी उन्हें सिखाया गया है। आतंकी/नक्सली, यही तरीका प्रयोग में ला रहे हैं।
बैलिस्टिक एक्सपर्ट के मुताबिक, अब टिफिन बम बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहे हैं। रिमोट या टाइमर के द्वारा आसानी से यह ब्लास्ट हो जाता है। ऐसे ब्लास्ट तैयार करने के लिए नक्सलियों के पास कंटेनर, केमिकल, डेटोनेटर, इनिशिएटर और वायर सब कुछ होता है। डेटोनेटर को पावर देने के लिए माओवादी, ड्राई बैटरी सेल का इस्तेमाल कर रहे हैं। स्पेशल डेटोनेटर भी आने लगे हैं। एक्सपर्ट के अनुसार, नक्सलियों द्वारा स्पेशल डेटोनेटर में घड़ी का सेल लगाया जा रहा है। अगर ज्यादा वोल्टेज की जरूरत है तो वहां तीन चार सेल जोड़ देते हैं। मार्केट में स्विच आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
बैलिस्टिक एक्सपर्ट के अनुसार, ब्लास्ट की घटना में टाइमिंग एक बड़ा फैक्टर होता है। अगर ये ठीक नहीं रहा तो विस्फोट करने वाला खुद भी मारा जाता है। आतंकी एवं नक्सली, 1.95 डेस्क टाइमर का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन सबके लिए उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। एबीसीडी स्विच की जगह पर दूसरी टर्म आ गई है। अगर एक्सपर्ट नहीं है तो टाइम आगे पीछे हो जाता है। नतीजा, समय पर ब्लास्ट नहीं होता। नक्सलियों द्वारा आईईडी विस्फोट करना, यह सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
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