नक्सल प्रभावित बीजापुर के लिए बड़ी चुनौती: 9,650 बच्चों को फिर से स्कूल लाना

इनमें से अधिकांश बच्चे 9 से 14 साल के उम्र समूह में आते हैं। सर्वे में यह भी सामने आया कि अधिकतर लड़कियाँ स्कूल नहीं जातीं, जबकि लड़कों का ड्रॉपआउट दर ज्यादा है।

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  • Publish Date - August 11, 2025 / 01:51 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ का बीजापुर जिला, जो नक्सल प्रभावित (Naxal affected) सबसे खतरनाक क्षेत्रों में से एक है, अब एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है—लगभग 10,000 बच्चों को फिर से स्कूल वापस लाने का। मई में जिले की प्रशासनिक टीम द्वारा किए गए सर्वे में चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। जिले में कुल 9,650 बच्चे स्कूल में नामांकित नहीं हैं, जिसमें से 79% (7,604) ने कभी स्कूल का रुख नहीं किया, जबकि 21% (2,046) बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुके हैं।

इनमें से अधिकांश बच्चे 9 से 14 साल के उम्र समूह में आते हैं। सर्वे में यह भी सामने आया कि अधिकतर लड़कियाँ स्कूल नहीं जातीं, जबकि लड़कों का ड्रॉपआउट दर ज्यादा है। बच्चों के स्कूल छोड़ने के मुख्य कारणों में घरेलू कार्य, जानवरों को चराने जाना, छोटे भाई-बहनों की देखभाल, बीमारी और पढ़ाई से डर शामिल हैं। सर्वे के अनुसार, यह बच्चों की व्यक्तिगत पसंद नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दबाव का परिणाम है।

नक्सलियों के बीच स्कूल छोड़ने का मामला

बीजापुर के इंद्रावती नेशनल पार्क में फरवरी में मारे गए 31 नक्सलियों में से एक, ज्योति हेन्द्रा का मामला भी इसी संदर्भ में सामने आता है। ज्योति ने कक्षा 3 में पढ़ाई छोड़ दी थी और घर के कामों में मदद करने लगी थी। 2021 में उसने नक्सलियों में शामिल होने का फैसला लिया। इस पर पुलिस अधिकारियों का कहना है कि नक्सली नाबालिगों को भर्ती करने में भी सक्रिय हैं, और ज्यादातर नक्सलियों ने कभी स्कूल नहीं देखा या पढ़ाई बीच में छोड़ दी।

बीजापुर का ड्रोपआउट रेट

2021 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बीजापुर में प्राथमिक स्कूल ड्रॉपआउट रेट 11.2% था, जो बस्तर के सात नक्सल प्रभावित जिलों में सबसे अधिक है। इस आंकड़े को देखते हुए, बीजापुर जिला कलेक्टर सम्बित मिश्रा ने सर्वे करवाया, जिसमें जिले के सभी 52,000 परिवारों से जानकारी जुटाई गई। सर्वे के परिणाम में यह सामने आया कि बहुत से बच्चे स्कूल छोड़ने के बाद भी पढ़ाई के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि गुणवत्ता की शिक्षा और समर्थन प्रणाली की कमी है।

विशेष जरूरतों वाले बच्चों के लिए भी चिंता

दूसरी ओर, विशेष जरूरतों वाले बच्चों (CWSN) की स्थिति भी चिंताजनक है। जिले में 204 CWSN बच्चे स्कूल से बाहर हैं, जिनमें से 88% (179) बच्चों ने कभी स्कूल नहीं देखा।

आगे की योजना

संज्ञान लेते हुए, सम्बित मिश्रा ने इन बच्चों को शिक्षा प्रणाली में फिर से शामिल करने के लिए एक बहुस्तरीय रणनीति तैयार की है। उनका लक्ष्य इस शैक्षणिक वर्ष में 100% नामांकन सुनिश्चित करना है। 5 साल तक के बच्चों को आंगनवाड़ी में नामांकित किया जाएगा, 6-8 साल के बच्चों के लिए बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN) की योजनाएं बनाई जाएंगी। 9-14 साल के बच्चों के लिए “ब्रिज कोर्स सेंटर” के रूप में पोर्टा कैबिन स्कूलों में भेजा जाएगा। वहीं, 14 साल से ऊपर के बच्चों के लिए समुदाय आधारित व्यावसायिक शिक्षा और खुला विद्यालयी शिक्षा प्रणाली विकसित की जाएगी।

आशा की किरण

बीजापुर के प्रशासन ने इस सर्वे को 8 मई से 20 मई तक पूरा किया, जिससे अब बीजापुर के बच्चों को एक नई दिशा मिलने की उम्मीद है।