छत्तीसगढ़ डेस्क। राजनीति (Politics) की परिभाषा है कि लोकतंत्र में राज्य की वह नीतियां जो जनतंत्र के लिए हितकारी हो। एक काम करने वाला यानी सत्ताधारी और दूसरा विपक्ष (Opposition) जिसका काम है कि सत्ता की नीतिगत खामियां को तर्कसंगत रूप से सदन में या सार्वजनिक रूप से जनता के बीच रखना। एक पुरानी कहावत है कि निंदक नियरे राखिए, कहने तात्पर्य है कि एक सशक्त विपक्ष। जो जनहित से जुड़े मुद्दे को मजबूत से उठाए। लेकिन आजकल राजनीति के मायने ही बदल गए हैं। अधिकांश पार्टियां जो परिवारवाद की नींव पर खड़ी हैं। इनका फार्मूला है क्षेत्र और जातिवाद। जिसके भरोसे ऐसी पार्टियां अपने-अपने राज्य में राजनीति उपक्रम करने में जुटी रहती हैं। इसमें एक चुनाव में सफल तो दूसरे में उनकी निजी स्वार्थ की पराकाष्ठा के चलते असफल। अब तक अगर बीते दशकों की बात करें तो यही चल रहा है। लेकिन इसमें एक भारी परिवर्तन देखने को मिला है, जो कहीं से भी राजनीतिक शुचिता की बात नहीं कही जा सकती है। पार्टियां सत्ता की कुर्सी पाने के लिए पब्लिक में मुफ्त की रेवड़ी बांटने की जनता में एक परंपरा की नींव रखी दी है। ऐसे में जाहिर है कि इसे लेकर पार्टियाें में प्रतिस्पर्धा का एक स्वरूप भी दिखाई देने लगा है। सत्ता पक्ष जहां अपने एजेंडे पर काम की ब्रांडिंग करती है तो दूसरी ओर विरोधी पार्टियां जनमुद्दों को छोड़कर जनता में भ्रम पैदा करने की कोशिश करती है। लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल बार-बार विपक्ष द्वारा होना। यह दर्शाता है कि भारतीय राजनीति में अब भाषा की सभ्यता की शुचिता नगण्य हो गई है, जो आज भी जारी है।
इसका एक स्वरूप बीते लोकसभा चुनाव में दिखा। जब केंद्र की भाजपा सरकार जहां अपने राष्ट्रवाद और विकासवाद के नाम पर वोट मांग रही थी। इसमें राम मंदिर और जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने जैसे कई मुद्दे थे। इसकी ब्राडिंग में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। भाजपा को लग रहा था कि 400 पार का नारा दिया है, इतना तय है कि एनडीए 300 पार तो आ ही जाएगी। इस आत्मविश्वास का फायदा उठाते हुए इंडिया गठबंधन के ऐसे दल जिनके नेता भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे और जेलों में बंद थे, उन्होंने एक नारा दिया कि संविधान खतरे में है। जबकि ऐसी कोई रत्ती भर भाजपा में नहीं थी। लेकिन हाथों में संविधान की लाल किताब पकड़कर चुनाव अभियान इंडिया गठबंधन ने चलाया और खासतौर पर उत्तर भारत में दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा वर्ग का भाजपा को कम वोट मिला, और नतीजा इंडी गठबंधन ने भाजपा के 400 पार वाली चुनावी गाड़ी को रोक दी। फिर भी मोदी की प्रचंड लहर को रोक लेने में ही इंडी गठबंधन को जीत जैसा गुडफील हो रहा है और खास तौर पर राहुल गांधी को।
अब लोगों को समझ आने लगा कि ये क्या खटाखट महिलाओं के खाते में पैसे डालने की बात कहने वाले यूपी के दो लड़कों यानी राहुल और अखिलेश ने झांसा देकर अपने मकसद में कामयाब हो गए। जनता भी समझ रही है कि जब भ्रष्टाचार के मिल रहे सबूतों की बुनियाद में इंडी गठबंधन के दलों के नेता या तो जेल हैं और बाहर हैं उनकी जांच चल रही है। पीएम मोदी के वह गारंटी जिसमें उन्होंने कहा था कि किसी भी भ्रष्टाचारी को नहीं छोड़ेंगे, जिन राज्यों के लोगों ने इसे समझ लिया था। वहां भाजपा की सीटें ज्यादा निकलीं। इसमें मध्यप्रदेश में पूरा क्लीन स्वीप तो छत्तीसगढ़ में भी एक सीट छोड़कर भाजपा ने सभी सीटें जीत ली। कहा जा सकता है कि भाजपा जहां विकासवाद के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही थी, वहीं इंडी गठबंधन के पास कोई जनमुद्दे नहीं थे, उसके केंद्र में था संविधान खतरे में है। जबकि हकीकत यह भी थी इनके नेता जेल जाने के खतरे में आ गए थे, इसलिए संविधान सहित कई बातों के जरिए जनता को ध्यान भाजपा के विकासवाद के मुद्दे से ध्यान भटकाया गया।
इसके पीछे कारण है कि इंडी गठबंधन को आभास था, अगर जनमुद्दों को उठाएंगे तो इसमें ज्यादा सफलता नहीं मिलेगी। इसलिए भावनाओं से जुड़े ऐसे मुद्दे जनता के बीच लेकर जाया, ताकि संविधान को आस्था के रूप में मानने वाला वर्ग भाजपा से कट जाए। इस फार्मूले पर विपक्ष कामयाब रहा। लेकिन राहुल गांधी के महिलओं के खाते में हर महीने 8,500 हजार रुपए खटखटा देने के वादे के बावजूद कांग्रेस को सिर्फ 99 सीटें ही मिल पाई। इससे यह समझा जा सकता है कि जनता का मूड आज भी मोदी के साथ है। यही वजह रही पीएम मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री बनकर हैट्रिक लगाई।
विपक्ष एक और उपक्रम था और आज भी कि अपने नेताओं के दामन पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता में प्रभाव न पड़े, इसलिए यह दुष्प्रचार किया गया कि मोदी सरकार जांच एजेंसियों का चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल कर रही है। लेकिन सवाल है कि मिले रहे करोड़ों की नकदी और बेनामी संपत्ति के दस्तावेज भी क्या नकली है। इन सवालों पर विपक्ष चुप्पी साध लेता है, लेकिन यह यक्ष प्रश्न जनता के मन में आज भी कौंध रहा है। जिसका जवाब लोकसभा चुनाव बीत जाने के बावजूद विपक्ष नहीं दे पाया।
विपक्ष सांसद में हास्यापद तरीके से लोकतंत्र खतरे दुहाई दे रहा है। जबकि जनता कह रही है कि ‘जनाब’ लोकतंत्र नहीं इनका कुनबा खतरे में है। भ्रम और दुष्प्रचार की नींव ही आज के राजनीति की परिपाटी बन चली है, लेकिन अब जनता समझ चुकी है कि मोदी के संकल्प में दम है एक विश्वास है, जो अटूट है।
आज भारत विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था है, भविष्य में 2029 तक तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। और 2047 तक एक विकसित राष्ट्र की परिकल्पना मोदी के नेतृत्व में ही संभव है। क्योंकि भाजपा की छवि विकासवादी और राष्ट्रवादी के रूप में स्थापित हो चुकी है।
यहां कहना लाजमी होगा कि भावनाओं के बजाए विकास और राष्ट्रवाद पर आधारित राजनीति ही देश हित में है। इसमें कहीं भी लेशमात्र जाति और क्षेत्रवाद का स्थान नहीं होना चाहिए। जिसकी नीतियां अच्छी और मुद्दे जनहितकारी होंगे, उसे जनता निश्चित तौर पर चुनेगी। लेकिन जब जनता द्वारा चुनी हुई सरकार पर विपक्ष यह आरोप लगाए कि संविधान और लोकतंत्र खतरे में हैं, तो जाहिर है कि जनता भी समझ जाती है कि ये खुद खतरे में हैं इसलिए ऐस प्रलाप कर रहे हैं।
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