बिलासपुर। 21 साल पहले एनसीपी नेता रामावतार जग्गी मर्डर केस (Ramavatar Jaggi Murder Case) में बिलासपुर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 28 दोषियों को हत्या के आरोप में मिली उम्रकैद की सजा (Life imprisonment to 28 culprits) को बरकरार रखा है। रायपुर में 4 जून 2003 को हुई इस हत्या के केस में आरोपियों को सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस केस का फैसला आने के बाद सजा काट रहे दोषियाों की तरफ से हाईकोर्ट में सजा के खिलाफ 22 अपील दायर की थी।
इस अपील की सुनवाई लंबी चली, जिसमें हाईकोर्ट ने बहस के बाद 29 फरवरी को रामावतार जग्गी हत्याकांड के दोषियों की अपील पर अंतिम सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था। इस फैसले का आदेश गुरुवार को जारी किया गया। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अरविंद वर्मा की डिवीजन बेंच ने आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। बेंच ने फैसले में कहा है कि सभी दोषियों को एक हफ्ते में ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करना होगा। सेशन कोर्ट में स्पेशल जज एस्ट्रोसिटी बीएल तिड़के ने सभी दोषियों को सजा सुनाई थी।
4 जून 2003 को एनसीपी नेता रामावतार जग्गी की मौदहापारा इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसे सुपारी किलिंग बताया गया था। 2003 विधानसभा चुनाव के पहले इस वारदात को अंजाम दिया गया था। इसके लिए दूसरे राज्य से शूटर बुलाए गए थे। सीबीआई को इसकी जांच सौंपी गई थी। लंबी जांच के बाद सीबीआई ने इस मामले में 31 बनाए गए थे। इसमें अमित जोगी को मास्टरमाइंड बताया गया था। अमित जोगी के अलावा अभय गोयल, याहया ढेबर, वीके पांडे, फिरोज सिद्दीकी, राकेश चंद्र त्रिवेदी, अवनीश सिंह लल्लन, सूर्यकांत तिवारी, अमरीक सिंह गिल, चिमन सिंह, सुनील गुप्ता, राजू भदौरिया, अनिल पचौरी, रविंद्र सिंह, रवि सिंह, लल्ला भदौरिया, धर्मेंद्र, सत्येंद्र सिंह, शिवेंद्र सिंह परिहार, विनोद सिंह राठौर, संजय सिंह कुशवाहा, राकेश कुमार शर्मा, (मृत) विक्रम शर्मा, जबवंत, विश्वनाथ राजभर, बुल्टू पाठक और सुरेंद्र सिंह को आरोपी बनाया गया था। बुल्टू पाठक और सुरेंद्र सिहं सरकारी गवाह बन गए थे।
कारोबारी बैकग्राउंड वाले रामावतार जग्गी देश के बड़े नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के बेहद करीबी थी। शुक्ल जब कांग्रेस छोड़कर NCP में शामिल हुए तो जग्गी भी उनके साथ-साथ गए। विद्याचरण ने जग्गी को छत्तीसगढ़ में NCP का कोषाध्यक्ष बना दिया।
छत्तीसगढ़ अलग प्रदेश बना तब विधानसभा में कांग्रेस का बहुमत था। कांग्रेस की ओर से सीएम पद की रेस में विद्याचरण शुक्ल का नाम सबसे आगे चल रहा था, लेकिन आलाकमान ने अचानक अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बना दिया। इस वजह से पहले नाराज चल रहे विद्याचरण पार्टी में अपनी अनदेखी से और ज्यादा नाराज हो गए।
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