Political Mega Story : मुद्दों की ‘सियासी’ युद्ध में BJP-कांग्रेस! राष्ट्रीय राजनीति से ‘छत्तीसगढ़’ तक बिछी ‘चुनावी’ शतरंज!

By : madhukar dubey, Last Updated : March 20, 2024 | 11:29 pm

रायपुर। इस बार का 2024 लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha elections) की जंग कुछ अलग ही अंदाज में दिख रही है। इसमें सभी छोटे-बड़े दल वोटों के ध्रुवीकरण के लिए कोई भी मुद्दा हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। एनडीए गठबंधन और इंडिया गठबंधन के पाले में अपनी ओर छोटे-छोटे दलों को खींचने के लिए बीजेपी और कांग्रेस (BJP and Congress) जुटी है। लेकिन कुछ राजनीति विसंगतियां भी देखने को मिल रही है। दोनों गठबंधन का हाल ये है कि तमाम दल अब एक गठबंधन से दूसरे गठबंधन में शामिल हो रहे हैं। क्षेत्रप की राजनीति करने वाले जातिगत वोटों की जमीन वाले छोटे दलों की संख्या ज्यादा है। बिहार में जहां इंडी गठबंधन में नीतीश बाबू थे, वे लोकसभा चुनाव के नजदीक आते-आते एनडीए में शामिल हो गए और बीजेपी के साथ मिलकर दोबारा सीएम की शपथ ले ली। इसके अलावा कांग्रेस सहित तमाम दलों के नेताओं में अब बीजेपी में शामिल होने की होड़ मची है।

भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह पार्टी के साथ-साथ एनडीए गठबंधन को मजबूत बनाने के मिशन पर जुटे हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 400 पार लोकसभा सीटों को जीतने का दावा करते नजर आ रहे हैं। यही कारण भी है कि साउथ इंडिया के राज्यों की सीटों पर फोकस करते हुए चुनावी दौरे पर हैं। इन सबके बीच कांग्रेस के मुख्य चेहरे राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा में पीएम मोदी पर लगातार वार करते रहे। अभी हाल ही में राहुल गांधी ने शक्ति के विरोध करने वाले बयान को पीएम मोदी ने चुनावी हथियार बना लिया।

  • लिहाजा, कांग्रेस के नेताओं को राहुल के बयान के मायने बताने पड़ रहे हैं। क्योंकि राहुल गांधी ने अपने बयान में हिंदू धर्म में एक शक्ति है, का जिक्र कर दिया था। बस यहीं चूक हो गई राहुल गांधी से, और चुनावी माहौल में पीएम मोदी ने कांग्रेस को हिंदू और सनातन विरोधी करार दे डाले। पीएम मोदी के तर्क के आगे कांग्रेस खुद को असहज महसूस कर रही है। वैसे भी चुनावी माहौल में एक-एक शब्द के मायने निकाला जाना राजनीति की परिपाटी है।

राहुल गांधी के शक्ति के बयान से पूर्व बिहार की एक जनसभा में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने परिवारवाद पर कहा था, मोदी का कोई परिवार नहीं है, वे परिवार का क्या दर्द जाने। इस बयान को भी बीजेपी ने हाथो हाथ लेते हुए बड़ा चुनावी मुद्दा बनाते हुए पार्टी का एक देशव्यापी अभियान ही छेड़ दिया। पीएम मोदी ने कहा था, मेरा परिवार मेेरे देशवासी है। फिर क्या था, शुरू हुआ मैं हूं मोदी का परिवार। वैसे मोदी हर मोर्चे पर कांग्रेस ही नहीं पूरे इंडी गठबंधन पर भारी पड़ रहे हैं। इसके पीछे कारण है कि राहुल का एक और बयान था, मोदी जी ओबीसी नहीं हैं। और न जाने कितने ऐसे उनके भाषण थे। जिसे पीएम मोदी ने बड़े ही जबरदस्त तरीके से पलटवार किया।

  • पीएम मोदी कांग्रेस की आलोचना के साथ-साथ लोगों के सामने देश का विजन भी लोगों के सामने रखते हैं। सन 2047 तक विकसित भारत के नारे के साथ उनका चुनावी मिशन जारी है। पीएम मोदी ने एक इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में कहा था, कि मेरा मिशन 2029 के चुनाव तक नहीं है। आप अपने मीडिया हाउस से और रिर्सच कराइए मेरा मिशन तो 2047 तक है। पीएम मोदी की जनसभाओं में उमड़े रहे भारी जनसैलाबऔर मोदी के भाषण में सनातन, विकासवाद, भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम का ऐलान देश की जनता आकर्षित करने में सफल होते दिख रहा है।

राजनीति के जानकार तो कहते हैं कि मोदी जी हैट्रिक लगाकर तीसरी बार तो पीएम बनेंगे ही। यहां लड़ाई बीजेपी 400 पार सीटों के लिए लड़ रही है। संभव है कि यह करिश्मा भी बीजेपी मोदी के दम कर सकती है। इसके पीछे तर्क है कि बीजेपी का बूथ स्तर का मैनेजमेंट अन्य सभी विरोधी पार्टियों से काफी आगे हैं। यही कारण है की मोदी की गारंटी का डंका देश में बज रहा है। वजह है, कश्मीर से 370 धारा, राम मंदिर सहित कई क्रांतिकारी फैसले माेदी सरकार ने लिए हैं। इसके अलावा मोदी की राज्यों में मोदी की गारंटी चल रही है। जिसका फर्क साफ तौर पर चुनाव के मतगणना के दिन दिखेगा। बीजेपी और माेदी मैजिक कितना चलेगा, ये तो 4 जून को ही पता चल पाएगा।

  • कहने एक लब्बोलुआब यह कि बीजेपी का जो पैर्टन राष्ट्रीय स्तर है। उसी कूटनीति के रास्ते पर बीजेपी के शासित और गैर शासित राज्यों में देखने को मिल रही है। ठीक जैसे पीएम मोदी विपक्ष की आलोचनाओं को ही अपना मुख्य चुनावी हथियार बना लेते हैं। वैसे ही कुछ अंदाज में बीजेपी संगठन के राज्यों की इकाई भी अपने विपक्षी पार्टी के खिलाफ आक्रामक प्रहार करती दिख रही है।

आइए इसके बहाने अब हम बात करते हैं कि छत्तीसगढ़ के राजनीतिक परिद्ष्य में उन घटनाक्रमों की जो पिछले एक पखवाड़े में घटी। इसमें सबसे पहले तो बीजेपी ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी के संगठन में मची गुटबाजी और कांग्रेस के नाराज नेताओं के बयानों को मुद्दा बनाया। जिससे बीजेपी ने जनता में एक फीडबैक दिया कि ये तो खुद ही उलझे हैं। वे कैसे जनता के हितों को सुलझाएंगे, क्योंकि पांच साल उनके हाथों में प्रदेश की सत्ता थी।

दूसरा कांग्रेस काल में हुए घोटालों की काली स्याह जो जांच में उजागर हो रही वो सच्चाई को बड़े ही सलीके से मंच और सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस पर वार। चाहे वह शराब घोटाला, कोयला घोटाला, डीएमएफ फंड घोटाला, पीएससी परीक्षा भर्ती घोटाला, चावल घोटाला यानी घोटाले का एक ऐसा गुलदस्ता सजा दिया, जिससे छांव में कांग्रेस का पंजा मुरझाया नजर आ रहा है। क्योंकि कांग्रेस जो दलीलें हैं वे सिर्फ इतनी है कि राजनीतिक द्वेषवश केस हुए हैं। लेकिन कोर्ट से भी अभी तक जेल में बंद उनके कांग्रेस खास नेता और अधिकारी अभी छूटे नहीं हैं। ईडी के कुछ ऐसे सबूत जो सार्वजनिक हुए, इसके चलते जनता में कांग्रेस की छवि धुंधली सी दिख रही है।

  • हाल में ही महादेव सट्टा एप के केस में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम आना एक सियासी भूचाल की तरह ही था। रही सही कसर कांग्रेस के संगठन महामंत्री अरुण सिसोदिया ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को एक पत्र लिखा, जिसमें जिक्र था, प्रदेश कोषाध्यक्ष रामगोपाल अगवाल ने करोड़ों रुपए का गबन किया है। आरोप लगा, कि इन्होंने अपने मित्र और भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा के बेटे की मीडिया कंपनी को करोड़ों रुपए दिए।

बहरहाल, ये कांग्रेस का अंदरूनी मामला था, लेकिन बीजेपी ने इसके बहाने कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती सरकार ने पब्लिक सेक्टर में घोटाले तो किए ही थे, अब कांग्रेस के लोग अपनी ही पार्टी के फंड में भी गबन करने लगे हैं।

  • सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों से बीजेपी का कहना है कि घोटाला करना तो कांग्रेस की परिपाटी है। जिसके जवाब में कांग्रेस नेताओं का कहना है कि कांग्रेस नेताओं से जोर जबरदस्ती ऐसे बयान बीजेपी दिला रही है। लेकिन सवाल उठता है कि जब कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई थी तो उस समय कांग्रेस के पार्टी के पदाधिकारी और पूर्व विधायकों ने ही टिकट नहीं मिलने को गंभीर आरोप लगाए थे।

ऐसे बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस नेताओं को पता है कि जनता में मोदी की गारंटी की लहर चल रही है। यही वजह है कि वे अपनी पार्टी के अंदर मचे घमासान को भी बीजेपी को ही कारण बता रहे हैं। क्योंकि इनके पास जनता के सामने जबाव देने के लिए कुछ बचा नहीं है। घोटालों की लंबी फेहरिस्त पर कांग्रेस घबराई हुई है। इनके नेता चुनाव लड़ने तक से डर रहे हैं। जबकि कांग्रेस भी बीजेपी पर अपने तरीके से सियासी पलटवार कर रही है। लेकिन ये सच है कि बयानों और सियासी घटना क्रम भी जनता में बड़ा फर्क पैदा करते हैं।

नजीर के तौर पर कांग्रेस जब सता में थी, तब भी पार्टी के अंदर की गुटबाजी का नजारा दिखा था। चाहे वह भूपेश-टीएस सिंहदेव के ढाई-ढाई साल सीएम का मुद्दा हो या अपने ही मंत्री पर विधायक बृहस्पति सिंह द्वारा जान से खतरे का अारोप। वैसे कांग्रेस की गुटबाजी और अंदुरुनी घमासान अब किसी से छिपा नहीं।

वैसे बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 35 विधायक जीते हैं। यही कारण भी है कि कांग्रेस को बीजेपी थोड़ा भी हल्के में नहीं ले रही है और कांग्रेस पर आक्रामक रणनीति के साथ बीजेपी सियासी वार करने में जुटी है। ताकि इस बार छत्तीसगढ़ में लोकसभा की सभी 11 की 11 सीटें हासिल कर क्लीन स्वीप किया जा सके।

  • इन सबके बीच रमनकाल के 15 साल के काम और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के तीन महीने के कार्यकाल में मोदी के गारंटी पर तैयार सियासी जमीन पर बीजेपी 11 की 11 सीटों को जीतने का दावा करती दिख रही है। पिछली बार 2019 में बीजेपी ने कांग्रेस की सरकार के बावजूद 9 सीटें हासिल की थी। अभी कुछ कहना उचित नहीं, होगा, बने सियासी माहौल से किसके पक्ष में लहर चल रही है। लेकिन बीजेपी बनाम कांग्रेस की तुलना में सियासी घटनाक्रम से समझने की कोशिश भर है। वैसे 4 जून को मतगणना के दिन सबकुछ साफ हो जाएगा।

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