छत्तीसगढ़। (Surajpur) सूरजपुर जिले के ग्राम केरता में स्थित मां महामाया सहकारी शक्कर कारखाना (Maa Mahamaya Cooperative Sugar Factory) में अधिकारियों की घोर लापरवाही व भ्रष्टाचार के चलते लगभग ₹ १२ करोड़ ३६ लाख ३८ हजार कीमत की शक्कर की कमी पाई गई। उक्त शक्कर कारखाने में लगातार शक्कर स्टॉक में कमी आने संबंधी शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए छत्तीसगढ़ शासन सहकारिता मंत्रालय द्वारा जांच दल का तो गठन किया गया जिसमें अपर पंजीयक एवम् जांच अधिकारी मुख्यालय श्री एच के नागदेव एवं सहायक पंजीयक एवं सहायक जांच अधिकारी मुख्यालय विकास खन्ना को नियुक्त किया गया। किंतु आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। आदेश के परिपालन में जांच दल द्वारा उक्त शक्कर कारखाने की जांच कर जांच प्रतिवेदन जो सौंपा गया है, वह चौंकाने वाला है।
भारतीय जनता पार्टी सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक शशिकांत द्विवेदी ने बताया कि शक्कर कारखाने के गोदामों में शक्कर के भौतिक सत्यापन में जांच दल द्वारा कई कमियां पाई गई। जैसे कारखाने द्वारा शक्कर की बोरियों की स्टैकिंग वैज्ञानिक तरीके से नहीं की गई।
अतः आयतन के आधार पर जांच दल द्वारा गणना की गई। कारखाने के प्रबंध संचालक और गोदाम प्रभारी द्वारा यह जानकारी दी गई कि कारखाने के निकट खदान में ब्लास्टिंग होने के कारण पूर्व में शक्कर की बोरियों के गिरने से एक हमाल की मृत्यु हो गई थी अतः स्टैकिंग इस प्रकार की गई किंतु स्टेकवार जानकारी प्रदर्शित न करने के संबंध में पूछने पर कोई जानकारी प्रबंधन द्वारा नहीं दी गई। इस प्रकार अवैज्ञानिक तरीके से स्टेकिंग करना, स्टेक वार जानकारी प्रदर्शित न करना तथा पूर्व में दुर्घटना होने के बावजूद भी ऊंचे ऊंचे स्टेक लगाया जाना पाया गया ।जिससे कारखाना द्वारा दिया गया तर्क उचित प्रतीत नहीं होता । अतः प्रबंधन की घोर लापरवाही उजागर करते हुए इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि जानबूझकर बारदानों को ऐसे जमाए गए जिससे उनकी गणना कर पाना संभव ना हो ।
विशेष उल्लेखनीय है कि कारखाने के रजिस्टर में २८ अप्रैल २०२१ को अचानक २३२० मिश टन मोलासेस(शीरा) का अतिरिक्त स्टॉक दर्शाया गया जो एक दिन में हो पाना संभव नहीं है ।जबकि कारखाने के दस्तावेज के अनुसार दिनांक २२ मार्च २१ के पश्चात मोलासिस का उत्पादन रुकना दिखाया गया है। अतः कारखाने के दस्तावेजों के आधार पर ही रिकॉर्डेड मोलासिस की मात्रा में भौतिक सत्यापन में १६४१मि ०टन मोलासिस अधिक पाई गई।
मोलासिस के संबंध में भारत सरकार को भेजी जाने वाली रिपोर्ट और दी गई जानकारी में कारखाने के उत्पादन में भारी अंतर है। इसी प्रकार पीपी बैग की जानकारी जो दी गई वह भ्रामक है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कारखानों द्वारा दस्तावेजों के संधारण में फेरफार ,गड़बड़ी एवं लापरवाही बरती गई है जिसके कारण बारदाना खरीदी के दस्तावेजों के संधारण में अनियमितता हुई है। कंप्यूटरीकृत संचालन के लिए ईआरपी सॉफ्टवेयर लगाया गया है । उक्त सॉफ्टवेयर के माध्यम से निकलने वाली रिपोर्ट के आधार पर औचक निरीक्षण कर स्कंध के सत्यापन की कार्यवाही का विकल्प प्रबंधन के मुखिया के पास उपलब्ध था किंतु ऐसी कार्यवाही किया जाना नहीं पाया गया ।
इस प्रकार कारखाने में कुल राशी रुपए १२करोड़३६लाख ३८हज़ार कीमत की शक्कर की कमी पाई गई। शक्कर की कमी के लिए उक्त सहकारी शक्कर कारखाना के प्रबंध संचालक ,महाप्रबंधक, आदि को जांच दल द्वारा जिम्मेदार ठहराया गया है। शक्कर की कमी होना कर्तव्य निष्पादन सही रूप से नहीं होने के साथ ही साथ यह दर्शाता है कि कारखाने के प्रबंध संचालक तथा महाप्रबंधक द्वारा घोर लापरवाही करते हुए सुनियोजित ढंग से यह कृत्य किया गया। जिससे संस्था को आर्थिक हानि हुई है। तथा संस्था की साख को धक्का लगने के साथ ही साथ छवि भी धूमिल हुई है। किंतु छत्तीसगढ़ सरकार सहकारिता विभाग द्वारा गोलमाल कर मात्र ५८ (धारा)के तहत सघन जांच किए जाने की अनुशंसा की गई । ज्ञातव्य है कि उक्त सहकारी शक्कर कारखाने में कांग्रेस समर्थित सदस्यों का निर्वाचित बोर्ड है जिसके ऊपर कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। जानकारी अनुसार उक्त प्रकरण में किसी भी अधिकारी से अभी तक ना तो उक्त राशि की रिकवरी की कार्यवाही की गई और ना ही किसी को निलंबित किया गया। भारतीय जनता पार्टी सहकारिता प्रकोष्ठ मांग करती है दोषी अधिकारियों के विरुद्ध अविलंब कार्यवाही संस्थित की जावे ।
साथ ही यह भी बताना चाहता हूं कि सहकारिता विभाग द्वारा वैधानिक अधिकरण के कार्यों में भी व्यवधान डाले जाने की जानकारी मिली है ।सहकारिता प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक शशिकांत द्विवेदी ने बताया कि छत्तीसगढ़ सहकारी सोसायटी अधिनियम की धारा ७७ यथा संशोधित अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी अधिकरण बिलासपुर का गठन किया गया था। विगत कुछ महीनों से सहकारिता विभाग द्वारा अधिकरण के दैनिक कार्यों में व्यवधान पैदा किया जा रहा है। जबकि अधिनियम की धारा ७७(ख) अनुसार इस अधिकरण को सिविल न्यायालय की शक्तियां प्रयोग करने का अधिकार है । इसी कड़ी में अधिकरण के स्टेनो टाइपिस्ट को हटाया गया है ।
प्राप्त जानकारी अनुसार अनेक प्रयासों के बावजूद भी कोई एवजीदार नहीं दिया गया जिससे३_ ४ माह से अधिकरण का न्यायिक कार्य पूर्णरूपेण बंद है। उल्लेखनीय है कि अधिकरण द्वारा अनेक निर्णयों में पंजीयक सहकारिता के विरुद्ध टिप्पणी की गई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि उपरोक्त कारणों से सहकारिता विभाग द्वारा अधिकरण को पंगु बनाने की चेष्टा की जा रही है ।अध्यक्ष महोदय द्वारा निराश होकर अपना सशर्त त्यागपत्र शासन को सौंप दिया गया । जिसमें उल्लेख किया गया है कि” शासकीय असुविधा के कारण कार्य करने में असमर्थ हूं अतः दिनांक १ फरवरी २०२३ को मेरा त्यागपत्र स्वीकार किया जाए”।
विधि द्वारा स्थापित किसी न्यायिक अधिकरण के अध्यक्ष द्वारा शासन के दुर्भावनापूर्ण कृत्य से निराश होकर सशर्त त्यागपत्र का संभवत: यह प्रथम उदाहरण है। आप सबके ध्यान में लाते हुए हम प्रकरण की जांच एवं दोषी के विरुद्ध कार्रवाई किए जाने की मांग करते हैं। उक्त पत्रकार वार्ता में प्रमुख रूप से श्री देवजी भाई पटेल प्रभारी सहकारिता प्रकोष्ठ भारतीय जनता पार्टी छत्तीसगढ़ सोमेश पांडे मीडिया प्रभारी अमरजीत बख्शी सह मीडिया प्रभारी , सोशल मीडिया सह प्रभारी श्री अभिषेक तिवारी, जिला संयोजक शहर श्रीमती नीलम सिंह जिला संयोजक ग्रामीण रायपुर शिरीष तिवारी विकास अग्रवाल आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।