अबूझमाड़ एनकाउंटर के बाद हिड़मा बना सबसे बड़ा सिरदर्द, बासवराजू की मौत से माओवादियों को करारा झटका
By : ira saxena, Last Updated : May 23, 2025 | 12:51 pm
By : ira saxena, Last Updated : May 23, 2025 | 12:51 pm
रायपुर, 23 मई 2025 : छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ के जंगलों में सुरक्षाबलों और माओवादियों (maoists) के बीच हुए भीषण मुठभेड़ में CPI (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बासवराजू की मौत ने माओवादी संगठन को गहरा आघात पहुंचाया है। लेकिन सुरक्षा एजेंसियां अब चेतावनी दे रही हैं कि असली चुनौती अब भी बाकी है — जब तक माओवादी कमांडर माड़वी हिड़मा पकड़ा नहीं जाता या मारा नहीं जाता, खतरा पूरी तरह टला नहीं है।
बस्तर के पुवर्ती गांव का रहने वाला हिड़मा छत्तीसगढ़ में माओवादियों की मिलिट्री विंग पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन 1 का प्रमुख है और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का भी सदस्य है। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, पिछले दो दशकों में जितने भी बड़े नक्सली हमले हुए हैं — चाहे वो 2010 का छिंतलनार में 76 CRPF जवानों की शहादत हो या 2013 का झीरम घाटी हमला, जिसमें कांग्रेस का पूरा राज्य नेतृत्व मारा गया — हिड़मा की रणनीति और भागीदारी प्रमुख रही है।
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “तेलुगू बोलने वाले माओवादियों के वर्चस्व वाले संगठन में हिड़मा एकमात्र स्थानीय आदिवासी नेता है जो शीर्ष कमान में है। उसकी उपस्थिति, सैन्य रणनीति और जमीनी पकड़ माओवादी कैडर में आज भी प्रेरणा का स्रोत है।”
हाल के वर्षों में सुरक्षाबलों ने अबूझमाड़ के अंदरूनी इलाकों में कई ऑपरेशन चलाए, जिनमें हिड़मा कई बार घिरा, लेकिन हर बार जंगलों की आड़ में निकल भागा। 2017 के भेज्जी और बुर्कापाल हमलों के बाद ऑपरेशन प्रहार चलाया गया, जिसमें हिड़मा घायल हुआ था, लेकिन जल्द ही फिर सक्रिय हो गया।
2021 में उसके पैतृक क्षेत्र के पास उसकी मौजूदगी की जानकारी मिलने पर, एक बड़ा ऑपरेशन चलाया गया जिसमें 540 CRPF व कोबरा कमांडो, 250 DRG और STF जवान शामिल थे। लेकिन हिड़मा ने उन्हें जाल में फंसा दिया और 22 जवानों को मार गिराया।
अभी हाल ही में अप्रैल-मई 2025 में करेगुट्टा हिल्स ऑपरेशन में करीब 25,000 जवानों की भागीदारी से दशकों का सबसे बड़ा माओवादी विरोधी अभियान चलाया गया, जिसमें 31 नक्सली मारे गए, लेकिन हिड़मा एक बार फिर चकमा देने में सफल रहा।
पूर्व CRPF डीजी और आंध्र प्रदेश के ग्रेहाउंड्स (एंटी माओवादी यूनिट) के प्रमुख रहे के. दुर्गा प्रसाद का मानना है कि असली निर्णायक मोड़ हिड़मा की गिरफ्तारी या मौत ही होगी। उनके अनुसार, “बासवराजू की मौत बहुत बड़ी है, लेकिन अगर हिड़मा मारा गया, तो पूरा कैडर टूट जाएगा। वही उनकी ताकत का अंतिम स्तंभ है।”
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सरकार को इसके साथ-साथ एक मजबूत आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति भी लॉन्च करनी चाहिए। “हिड़मा के हटने के बाद यह नीति कैडरों और माओवादी नेतृत्व को आकर्षित कर सकती है। पिछले दो दशकों में माओवादियों को नए नेता नहीं मिले हैं, अब तो नए कैडर भी मिलना मुश्किल हो गया है। विचारधारा युवाओं को अब नहीं भा रही और संसाधनों की भी भारी कमी है।”
बासवराजू की मौत माओवादियों के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन हिड़मा की गिरफ्तारी या मौत तक यह लड़ाई खत्म नहीं मानी जा सकती। अब सभी की निगाहें उस पर टिकी हैं, जिसने दहशत और गुरिल्ला युद्ध को वर्षों तक जिन्दा रखा है।