बच्चों में अस्थमा के इलाज में नई उम्मीद, अध्ययन से मिली दिशा

अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ों और सांस की नली में सूजन हो जाती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है।

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  • Publish Date - August 2, 2025 / 04:22 PM IST

नई दिल्ली। बच्चों में अस्थमा (Asthma) आजकल एक गंभीर समस्या बन चुकी है, जो उनकी सांस लेने की क्षमता को प्रभावित करती है। हालांकि इलाज, जैसे इनहेलर या दवाइयों के बावजूद कई बार बच्चों की तबीयत अचानक बिगड़ जाती है। इसे ‘अस्थमा फ्लेयर-अप’ कहा जाता है। अब वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि कुछ खास जैविक प्रक्रियाएं शरीर में ऐसी सूजन पैदा करती हैं, जो सामान्य इलाज से ठीक नहीं होती। हाल ही में अमेरिका के शिकागो स्थित एन एंड रॉबर्ट एच. लूरी चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों ने एक शोध किया, जिसने अस्थमा की जटिलताओं को समझने में मदद की और बेहतर इलाज के लिए नई राह खोली है।

अस्थमा क्या है?

अस्थमा एक ऐसी बीमारी है जिसमें फेफड़ों और सांस की नली में सूजन हो जाती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि बच्चों में अस्थमा के अलग-अलग कारण होते हैं, और इनमें सूजन के कई रास्ते सक्रिय रहते हैं। इनमें से एक प्रमुख तरीका है टाइप 2 इन्फ्लेमेशन, जो इओसिनोफिल्स नामक सफेद रक्त कणों को बढ़ाता है, जिसके चलते फेफड़ों में सूजन आ जाती है और अस्थमा के लक्षण गंभीर हो जाते हैं।

नई खोज

वैज्ञानिकों ने इस शोध में पाया कि दवाइयां, जो खासकर टाइप 2 सूजन को कम करती हैं, इसके बावजूद कुछ बच्चों को अस्थमा के दौरे पड़ते हैं। अध्ययन के प्रमुख डॉक्टर राजेश कुमार ने कहा, “ऐसी दवाइयां जो खास तौर पर टाइप 2 सूजन को कम करती हैं, फिर भी कुछ बच्चों को अस्थमा के दौरे पड़ते रहते हैं। इसका मतलब यह है कि टी2 सूजन के अलावा भी कुछ और तरीके हैं जो अस्थमा को बढ़ाते हैं।”

शोध के परिणाम

जेएएमए पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 176 बार बच्चों के नाक से नमूने लिए, जब वे अचानक से सांस की बीमारी से पीड़ित थे। फिर इन नमूनों की खास जांच की गई, जिससे पता चला कि उनके शरीर में कौन-कौन से बदलाव हो रहे हैं। इस दौरान वैज्ञानिकों ने तीन मुख्य सूजन के कारण खोजे:

  1. एपिथेलियम इन्फ्लेमेशन पाथवे – यह फेफड़ों की सतह पर सूजन का एक खास रास्ता है, जो उन बच्चों में ज्यादा पाया गया, जो मेपोलिजुमैब दवा ले रहे थे।

  2. मैक्रोफेज-ड्राइवन इन्फ्लेमेशन – यह विशेष रूप से वायरल सांस की बीमारियों से जुड़ा हुआ था, जिसमें शरीर के सफेद रक्त कण अधिक सक्रिय हो जाते हैं।

  3. म्यूकस हाइपरसेक्रेशन और सेलुलर स्ट्रेस रिस्पॉन्स – यह फेफड़ों में अधिक बलगम बनने और कोशिकाओं के तनाव से जुड़ा था, जो दवा लेने वाले और न लेने वाले दोनों बच्चों में अस्थमा के दौरे के दौरान बढ़ जाता है।

आगे की दिशा

डॉक्टर राजेश कुमार ने कहा, “शोध में हमने पाया कि जिन बच्चों को दवा लेने के बाद भी अस्थमा का अटैक आता है, उनमें एलर्जी से जुड़ी सूजन कम होती है, लेकिन फेफड़ों की सतह पर अन्य सूजन के रास्ते सक्रिय होते हैं। इसका मतलब है कि अस्थमा बहुत जटिल है और हर बच्चे में अलग-अलग वजह से होती है।”

शहरी बच्चों के लिए बड़ी उम्मीद

शहरों में रहने वाले बच्चों में अस्थमा अधिक पाया जाता है, और इस शोध से मिली जानकारियां खास तौर पर उनके लिए बड़ी उम्मीद हैं। इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि किस बच्चे को किस तरह की सूजन ज्यादा है और उसके अनुसार सही इलाज दिया जा सकेगा।

इस शोध से यह भी स्पष्ट हुआ है कि अस्थमा के इलाज में एक आकार-निर्धारित उपाय काम नहीं करता। हर बच्चे में सूजन के अलग-अलग रास्ते हो सकते हैं, जिन्हें पहचानकर इलाज किया जा सकता है। बच्चों में अस्थमा की जटिलताओं को समझना और उसके अनुसार व्यक्तिगत उपचार पद्धति अपनाना भविष्य में इस बीमारी के इलाज को और प्रभावी बना सकता है।