“नक्सल फ्री इंडिया” अब सिर्फ सपना नहीं: अगले 10 महीने में भारत हो सकता है नक्सलमुक्त, आंकड़े गवाह हैं

By : hashtagu, Last Updated : May 30, 2025 | 11:56 pm

नई दिल्ली/काराकाट : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 30 मई को बिहार के काराकाट में चुनावी जनसभा के दौरान नक्सलवाद पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि “अब वो दिन दूर नहीं जब भारत पूरी तरह से नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा।” यह बयान केंद्र सरकार के उस लक्ष्य की ओर इशारा करता है जिसके तहत मार्च 2026 तक भारत को नक्सलमुक्त बनाने का रोडमैप तैयार किया गया है।

गृह मंत्री अमित शाह भी कई बार मंच से यह दोहरा चुके हैं कि भारत जल्द ही माओवादी उग्रवाद से पूरी तरह मुक्त होगा।

ऑपरेशन की बड़ी सफलता: महासचिव बासवराजू समेत 27 नक्सली ढेर

21 मई को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में सुरक्षा बलों ने बड़ा ऑपरेशन चलाया। इस दौरान सीपीआई (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बासवराजू को मार गिराया गया।

  • बासवराजू पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम था।

  • यह पहली बार है जब किसी महासचिव स्तर के नक्सली को सीधे मुठभेड़ में ढेर किया गया है।

  • इस ऑपरेशन में कुल 27 नक्सली मारे गए।

गृह मंत्री अमित शाह ने इसे तीन दशक की सबसे बड़ी कामयाबी बताया।

आंकड़ों से समझिए नक्सलवाद पर लगाम

सरकारी आंकड़े और विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट्स नक्सलवाद पर भारी गिरावट की ओर इशारा कर रही हैं:

वर्ष नक्सली घटनाएं नक्सल प्रभावित जिले
2010 1,936 ~150 (अनुमानित)
2013 126
2021 70
2023 38
2024 (अप्रैल) 374 18

➡️ 2010 की तुलना में नक्सली हिंसा में 81% की गिरावट दर्ज हुई है।
➡️ नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 126 से घटकर 18 रह गई है।

सरकार की दोहरी रणनीति: सुरक्षा + विकास

मोदी सरकार नक्सलवाद से निपटने के लिए ‘एक्शन और समावेशी विकास’ की नीति पर काम कर रही है:

  • लगातार कॉम्बिंग ऑपरेशन्स और इंटेलिजेंस-आधारित कार्रवाई से माओवादी नेटवर्क को ध्वस्त किया जा रहा है।

  • आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार योजनाओं को गति दी जा रही है, जिससे आम जनता का भरोसा बहाल हो सके।

क्या 2026 तक पूरा देश नक्सल मुक्त हो पाएगा?

विशेषज्ञों की मानें तो जिस गति से माओवादी गतिविधियों में गिरावट आई है और जिस तरह से शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाया गया है, उससे लगता है कि मार्च 2026 तक नक्सलवाद का समापन संभव है।

हालांकि, सीमावर्ती और घने जंगलों वाले कुछ क्षेत्रों में अब भी छिटपुट गतिविधियां जारी हैं, लेकिन उनका प्रभाव और नेटवर्क पहले की तुलना में काफी कमजोर हो चुका है।