पटना, बिहार: BJP ने बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी रणनीति लगभग तय कर ली है. पार्टी के शीर्ष नेताओं और राज्य कमेटी के बीच हाल ही में हुई बैठकों में कैंडिडेट्स की लिस्ट पर चर्चा कर ली गई है और इसे केंद्रीय चुनाव समिति को भेजा गया है. अब इस पर अंतिम फैसला दिल्ली से होगा.
लेकिन इस बार चर्चा कैंडिडेट चुनने से ज्यादा उन विधायकों को टिकट नहीं देने पर रही जो प्रदर्शन में कमजोर रहे या पार्टी के खिलाफ काम कर चुके हैं.
पार्टी सूत्रों के अनुसार BJP इस बार 25 से 30 मौजूदा विधायकों का टिकट काट सकती है. इसमें वे विधायक शामिल हैं जिन्होंने 2024 में NDA सरकार बनने के दौरान फ्लोर टेस्ट में पार्टी लाइन से हटकर वोट किया था. इन विधायकों की पहचान उसी समय कर ली गई थी. अब इन्हें टिकट नहीं देने का फैसला लगभग तय है. इस सूची में रश्मि वर्मा, मिश्री लाल यादव और भागीरथी देवी जैसे नाम शामिल हैं.
टिकट काटने का दूसरा बड़ा आधार उम्र है. 70 साल से ज्यादा उम्र वाले करीब 12 से 15 विधायकों को इस बार रिपीट नहीं किया जाएगा. पार्टी का मानना है कि इससे एंटी इनकंबेंसी खत्म होगी और नए चेहरों को मौका मिलेगा.
तीसरा कारण है प्रदर्शन. पार्टी ने कई स्तरों पर सर्वे कराया है जिसमें सामने आया कि कई विधायकों के खिलाफ जनता में नाराजगी है. ऐसे 5 से 6 विधायकों को टिकट की रेस से बाहर रखा गया है. यानी इस बार BJP अपने पुराने चेहरे बदलने की रणनीति पर काम कर रही है ताकि जीत की संभावना बढ़ाई जा सके.
BJP का इस बार टारगेट और भी बड़ा है. सूत्रों के अनुसार गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में पार्टी को 80 से 90 प्रतिशत सीटें जीतने का टास्क दिया है. पहले ये टारगेट 60 से 70 प्रतिशत होता था. शाह ने यह भी कहा कि इसके लिए अगर मौजूदा विधायकों के टिकट काटने पड़ें तो काटिए और जरूरत पड़ी तो केंद्रीय मंत्री या सांसदों को भी चुनाव में उतारिए.
इसी योजना के तहत पार्टी 6 से ज्यादा मौजूदा और पूर्व सांसदों को चुनाव मैदान में उतार सकती है. चर्चा है कि रामकृपाल यादव, सुशील सिंह, अश्विनी चौबे, गिरिराज सिंह और नित्यानंद राय जैसे नेता विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं.
पार्टी ने इससे पहले मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी ऐसा किया था. जहां सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में उतारा गया था. मध्य प्रदेश में तोमर, प्रह्लाद पटेल, राकेश सिंह, रीति पाठक जैसे नेताओं को उतारा गया था और इनमें से ज्यादातर जीतकर आए थे. BJP को इसका फायदा भी मिला था.
वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी के अनुसार यह अमित शाह की रणनीति का हिस्सा है. पार्टी मानती है कि सबसे ज्यादा नाराजगी विधायक के खिलाफ होती है. इसलिए चेहरा बदलकर इस नाराजगी को कम किया जा सकता है.
और पार्टी के भीतर की खींचतान को भी रोका जा सकता है. जब बड़े नेताओं को खुद की सीट जीतने की जिम्मेदारी दी जाती है तो वे दूसरे नेताओं की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करते. जिससे पार्टी को एकजुटता मिलती है.
BJP का यह फॉर्मूला बिहार में कितना काम करता है यह तो चुनाव नतीजे बताएंगे. लेकिन फिलहाल पार्टी पूरी तरह नए चेहरों और सख्त फैसलों की राह पर है.