कड़वी ‘सियासी’ घूंट : जनता की ‘नब्ज’ नहीं पकड़ ‘सकी’ कांग्रेस! हार के ज्वलंत कारण

By : madhukar dubey, Last Updated : December 4, 2023 | 8:50 pm

रायपुर। अतीत में जब 2018 में कांग्रेस की सरकार सत्ता में प्रचंड बहुमत के साथ आई तो सब कुछ ठीक चला। लेकिन साथ-साथ ही सीएम के ढाई-ढाई के साल के टर्न की बात सरेआम हो गई। जबकि अंदरखाने की बात से कांग्रेस (Congress) इससे इंनकार करती रही। लेकिन कभी-कभी टीएस सिंहदेव (TS Singhdev) के हर व्यक्ति में सीएम की इच्छा तो है, जैसा हाईकमान फैसला करे, वाले बयान से मामला तूल पकड़ता जा रहा था। इससे विधायकों में दो फाड़ हो गए। इसमें एक गुट भूपेश तो दूसरा टीएस सिंहदेव के खेमे में चला गया। फिर शुरू हुआ कांग्रेस में सत्ता का शीतयुद्ध। फिर-ढाई साल पूरे होने पर दिल्ली में जिस तरह से विधायकों की गोलबंदी। इससे जनता में एक संदेश तो साफ तौर पर चला गया है, कांग्रेस में सत्ता की खींचतान मची है। जिसका एक साइड इफेक्ट सरगुजा संभाग में भी पड़ा। क्योंकि वहां की जनता टीएस सिंहदेव को सीएम देखना चाह रही थी।

इसके अलावा टीएस सिंहदेव ने 16 लाख गरीबों के आवास नहीं बनने को लेकर ग्रामीण व पंचायत मंत्रालय से इस्तीफा अपना सार्वजनिक रूप से देना भी कारण बना। क्योंकि ऐसे में जनता भी मान गई कि केंद्र की योजनाओं से राज्य सरकार वंचित इसलिए कर रही कि मोदी की प्लानिंग है। यह संदेश भी जनता के बीच कांग्रेस से मोहभंग होने का सबसे बड़ा फैक्टर माना जा रहा है।

इसके बाद मुख्यमंत्री भूपेश ने इसे आर्थिक जनगणना नहीं होने का कारण बताकर केंद्र को पत्र लिखा। जिस पर केंद्र की दलील थी कि 2011 कांग्रेस के समय की ही आर्थिक जनगणना पर सभी राज्यों को पीएम आवास का लाभ दिया जा रहा है। लेकिन इसे लेकर कांग्रेस का तटस्थ हो जाना भी जनता को नहीं भाया। जिसने बीजेपी को एक बड़ा आंदोलन पीएम आवास को लेकर करने का मौका दे दिया। जिसे बीजेपी ने पूरे जोरशोर से प्रचारित करने में कामयाब हो गई कि कांग्रेस द्वेषवश केंद्र की योजना को प्रदेश में योजना लागू नहीं होेने देना चाहती है। यह फैक्टर भी पीएम आवास के लाखों हितग्राही में घर कर गई, जिनके आवास पहली किस्त के बाद रूक गई थी। ऐसे में वे कांग्रेस के प्रति उदासीन हो गए थे।

–गौठान का मुद्दा भी कांग्रेस को डैमेज किया है

इसके आलवा गौठानों को लेकर बीजेपी ने एक बड़े अभियान के रूप में छेड़ा। जिसे सोशल मीडिया के माध्यम से खूब प्रचारित किया। उसके विडियो वायरल किए गए। कांग्रेस पर आरोप लगा कि करीब 13 सौ करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। वैसे गौठानों की बदहाली की वजह से भी ग्रामीण अंचल में लोगों के मन में कांग्रेस के प्रति उदासीनता पैदा हुई। बीजेपी ने यहां तक कहा था? जैविक खाद बनाने के नाम पर मिट्टी का उपायोग कर फर्जी बिक्री की जा रही है। कमोवेश कहीं-कहीं इसकी हकीकत ग्रामीणों के बयान ने पुष्टि कर दी। इसका असर नगरीय और ग्रामीण अंचलों में भी पड़ा।

शराबबंदी नहीं होने से महिला वोटर का कांग्रेस से मोहभंग

शराबंदी के वादे पर आई कांग्रेस की सरकार ने सिर्फ समिति बनाकर ही रह गई। इससे महिलाओं का विश्वास टूटा। इसके साथ ही उन्हाेंने मान लिया किया शराबबंदी कौन कहे, उल्टा भूपेश सरकार में 2 हजार करोड़ के शराब घोटाले हो गए। ऐसे बाताें को बीजेपी ने अपने सोशल मीडिया से प्रचारित किया। लिहाजा ग्रामीण अंचल ही नहीं शहरी महिला वोटरों में प्रचारित हो गई। इससे उन्होंने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया।

-एक ही घर में कांग्रेस-बीजेपी की घुसपैठ रही

बीजेपी की महतारी वंदन योजना के माध्यम से विवाहित महिलाओं को 12 हजार सालाना देने की घोषणा पत्र। इसके आलवा बीजेपी के एकमुश्त धान का समर्थन मूल्य सहित घोषणा पत्र भी कारण थे। यहीं कारण था, पुरुष ने कांग्रेस तो महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया।

  1. –ये बड़े घोटाले हुए जिसे कांग्रेस आरोप बता रही थी
  2. 1-500 करोड़ रुपए का कोयला घोटाला
  3. 2-2,000 करोड़ रुपए का शराब घोटाला
  4. 3-6 सौ करोड़ रुपए का पीडीएस चावल घोटाला
  5. 4-13 सौ करोड़ रुपए का गौठान घोटाला
  6. 5-डीएमएफ फंड घोटाला
  7. 6-पीएससी परीक्षा घोटाला
  8. –सत्ता का विकेंद्रीकरण में अफसर और लाइजनरों की इंट्री भी कारण
  • 5 साल में विधायकों को बिल्कुल छूट नहीं मिली। ढाई-ढाई साल की राजनीति के चलते विधायकों के 2 गुट भी नज़र आए। इस गुटबाजी का असर यह भी रहा कि एक गुट के विधायकों की सुना जाना बिल्कुल बंद हो गया। वहीं दूसरे गुट के विधायकों को ज्यादा वैल्यू दी गई। इसके आलावा अफसरशाही के इशारे पर हर फैसले के बीजेपी के आरोप भी जनता में संदेश गया। इसमें कुछ दलाल और कारोबारी भी रहे। जिनके इशारे में पूरी मशीनरी चलने लगे। इनके नामों की चर्चा भी जनता के बीच प्रचारित किए गए।

ईडी की कार्रवाई के बाद इसमें अफसर और कारोबारी जेल में हैं। इसके सपोर्ट में कांग्रेस का आगे आना और उनके पक्ष में बयान देने से जनता की समझ में यह आया कि इसमें सभी शामिल है। क्योंकि हर किसी का तर्क था, कि ईडी की झूठी चार्जशीट होती तो कोर्ट तो जमानत देता। लेकिन इतनी देरी का मतलब कहीं न कहीं कुछ तो हैं।

यही भावना आम आदमी के मन में घर कर गई थी। क्योंकि जब अफसरों और कारोबारियों के यहां करोड़ों की नकदी बरामद हुई थी, ऐसे में इनके सियासी बचाव के बजाए अगर कांग्रेस जांच की मांग करती तो बेहतर होता, जैसा की आम आदमी सोचता है। इधर, बीजेपी ने जनता में वादा किया कि अगर सरकार बनी तो किसी भी भ्रष्टाचारी को नहीं छोड़ेंगे। पीएम मोदी के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कार्रवाई की बात भी लोगों को भा गई। इससे एक लहर यहां से भी बीजेपी के पक्ष में बनी। अब देखना है कि क्या भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी जांच कराती है। अगर ऐसा हुआ तो जाहिर है कि इसका फायदा बीजेपी को कई गुना मिलेगा। क्योंकि प्रदेश में युवा एक बड़ा वर्ग है, जो भ्रष्टाचार को ही हर समस्या का जड़ मानता है। वह चाहता है कि सिस्टम में पारदर्शिता हो।

  1. —अनुकंपा नियुक्ति को लेकर महिलाओं का बाल मुंडवाना! जो सोशल मीडिया में खूब चला, इससे महिलाओं के मन में सरकार के प्रति उदासीनता पैदा हुई।
  2. —कर्मचारियों के मुद्दे और अनियमित कर्मचारियों के नियमितिकरण
  3. –युवाओं को नग्न प्रदर्शन भी प्रमुख कारण बना
  4. बृहस्पत सिंह द्वारा टीएस सिंहदेव पर जानलेवा हमला कराना का आरोप। फिर विधानसभा में माफी मांगना भी, उसी दिन से कांग्रेस के दो फाड़ होने की कहानी शुरू हो गई थी।
  5. जिला सहकारी बैंक के दो कर्मचारियों ने कांग्रेस विधायक बृहस्पत​ सिंह के खिलाफ मारपीट का आरोप, इसका विडियो सोशल मीडिया पर वायरल होना।
  6. खबरों की विसंगतियों को लेकर पत्रकारों पर अंधाधुंध फर्जी मुकदमे कराना भी, यह बात भी सोशल मीडिया पर प्रचारित हुई, जिससे जनता में संदेश गया कि सच्चाई लिखने वाले पत्रकाराें पर मुकदमे करवाए जा रहे हैं। जिसे जनता के मन में यह धारणा सी बन गई कि अपनी खामियाें को सुधारने के बजाए दमनचक्र चलाने लगी है। यह कार्रवाई भी पोटर्ल और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले पत्रकारों के खिलाफ की गई थी। यह भी माना जा रहा है कि यह पत्रकारों के सोशल मीडिया पर हजारों लाखों की संख्या में फैंस थे, जिससे कांग्रेस के खिलाफ एक कैंपेन भी चला।

-कांग्रेस ने सिर्फ किसानों के वोटों भरोसा करना पड़ा भारी। आखिर कांग्रेस क्यों नहीं समझ पाई कि गरीब किसान का बेटा भी सरकारी नौकरी की तलाश में है। लेकिन भर्ती प्रक्रिया से इस वर्ग के युवाओं का विश्वास सरकार से उठ जाना। चुनाव से ठीक पहले पीएससी परीक्षा में हुए घोटाले को कांग्रेस सरकार ने बहुत हल्के में लिए। कई शिकायतों के बाद भी कोई बड़ा एक्शन नज़र नहीं आया। हर साल पीएससी की परीक्षा लगभग 6 लाख अभ्यर्थी देते हैं। यह विव्वाद केवल छह लाख अभ्यर्थियों तक नहीं बल्कि उनसे जुड़े उनके परिवार तक पहुंचा। सरकार का उदासीन रवैया इन अभ्यर्थियों के परिवार तक पहुंचा।

–ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर मची खींचतान। कोई कार्यकर्ता अपने समर्थक का ट्रांसफर पोस्टिंग नहीं करा पा रहा था। मिला जुलाकर एक ही जगह से होते थे। वह भी सौम्या चौरसिया के इशारे पर। इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं लेकिन बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस की सत्ता चलाने वाले सारे अफसर और दलालों को ईडी ने जेल भेज दिया है। इससे भी एक बड़ी एंटीकैंबंसी कांग्रेस के खिलाफ बनी।

-टिकट वितरण में गुटबाजी

कांग्रेस पार्टी ने इस बार सर्वे के आधार पर कुल 22 विधायकों की टिकट काट दी थी। इस बार टिकट वितरण में जमकर गुटबाजी भी नज़र आई। यहां अपने पसंदीदा प्रत्याशी को टिकट दिलवाने से कहीं ज्यादा फोकस दुसरे गुट के पंसदीदा प्रत्याशियों की टिकट कटवाने पर रहा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जगदलपुर की सीट। यहां पीसीसी चीफ दीपक बैज कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री मलकीत सिंह गेंदू को टिकट दिलवाना चाहते थे लेकिन डिप्टी सीएम टी एस सिंहदेव जतिन जैन के पक्ष में लॉबिंग कर रहे थे। अंत में टिकट जतिन जायसवाल को दी गई जबकि कांग्रेस की ओर से सबसे मजबूत प्रत्याशी रेखचंद जैन माने जा रहे थे। गुटबाजी के चक्कर में जैन को टिकट नहीं मिला।

-मंत्रियों की समीक्षा न करना

नौ मंत्रियों का चुनाव हारना, यह बताता है कि मंत्रियों के कामकाज से जनता संतुष्ट नहीं थी। विधायकों के कामकाज का रिव्यू तो पार्टी ने किया लेकिन मंत्रियों के कामकाज का रिव्यू नहीं हो पाया। मंत्रियों के खिलाफ नाराजगी रही और पार्टी उनके साथ खड़ी नजर आई। इस कारण सारे मंत्रियों को टिकट देने का मामला कांग्रेस के खिलाफ गया।

  • जातिगत जनगणना की बात को भी बहुसंख्य समाज ने स्वीकार नहीं किया। क्योंकि इससे समाज में एक तरह का वर्गीकरण होता और भेदभाव बढ़ने की आशंका थी। फिर ईडी और आईटी की कार्रवाई भ्रष्टाचार के मामले में होती रही, उससे भी भूपेश सरकार को नुकसान होने की बात सामने आ रही है।

-कर्जमाफी पर ज़्यादा बात

छत्तीसगढ़ में कर्जमाफी की घोषणा कांग्रेस के लिए गेमचेंजर साबित हुई थी। इसलिए 2023 में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी ने किसानों से ये वादा किया और जगह जगह इसका जिक्र करते रहे। कांग्रेस की इस घोषणा से बाकि वर्ग काफी नाराज हुई। अन्य वर्गों को लगता रहा कि सरकार ने उनके लिए कोई बड़ी घोषणा नहीं की।

-बिरनपुर हिंसा का असर

बिरनपुर हिंसा के बाद मारे गए युवक भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को टिकट देना भी निर्णायक रहा। ईश्वर ने न केवल रविंद्र चौबे जैसे दिग्गज मंत्री को हरा दिया, बल्कि इसका असर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी देखने को स मिला। साहू समाज के लोगों का दूसरे क्षेत्रों में भी समर्थन मिला।

महतारी वंदन ही गेमचेंजर

सबसे महत्वपूर्ण वादा रहा- भाजपा का महतारी वंदन योजना। महिलाओं को हर साल 12 हजार रुपए देने का वादा। फिर प्रत्याशियों द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में महतारी वंदन योजना का फार्म भरवाने का जो दांव चला वह निर्णायक हो गया। इसके तहत महिलाओं में यह संदेश गया भाजपा महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए देगी। अगर किसी घर में तीन महिलाएं हैं तो उनको तीन हजार रुपए महीने मिलेंगे। इस वादे को समझने और उसका काउंटर करने में भूपेश सरकार ने देर कर दी। हालांकि भूपेश ने बाद में घोषणा की कि महिलाओं को 15 हजार दिए जाएंगे लेकिन तब तक भाजपा का दांव घर-घर में काम कर चुका था।

-मुद्दों को समझ नहीं समझ पाए

छत्तीसगढ़ में लॉ एंड ऑर्डर की जो स्थिति ख़राब हुई थी उसकी शिकायत सीएम हॉउस से लेकर हर मंच तक हुई थी। पार्टी इसको समझ नहीं पाई, जो समझे वो भी इसको लेकर कुछ कर न सके। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के कार्यकर्त्ता भी नज़र थे। कई कार्यकर्त्ता जो विपक्ष में रहते हुए पार्टी के लिए खड़े रहे सरकार में आने के बाद उनकी अनदेखी से नाराज थे लेकिन पार्टी इन मुद्दों को सही से समझ नहीं पाई। कांग्रेस पार्टी ने 2018 में कुल 36 वादे किए थे। प्रमुख वादों में शराबबंदी और नियमितिकरण का वादा शामिल था। जहां शराबबंदी का वादा केवल समिति की गठन तक सीमित रहा तो वहीं अनियमित कर्मचारी नियमितिकरण की बाट ही जोहते रह गये।

-बाग़ियों की बगावत की अनदेखी

कांग्रेस पार्टी में टिकट वितरण से पहले ही संभावित दावेदारों को लेकर ही बगावत देखने को मिल रही थी इसके बावजूद बागियों को साथ रखने के लिए कांग्रेस ने कोई खास कोशिश नहीं की। अजीत कुकरेजा, अनूप नाग, गोरेलाल बर्मन जैसे बागियों को कांग्रेस पार्टी ने बड़े ही हल्के में लिया।

  • इनपुट (जनचर्चा और मीडिया रिपोटर्स पर आधारित)

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