CJI Chandrachud: देश के 50वें सीजेआई बने डी वाई चंद्रचूड़, जानें उनके बारे में ये खास बातें

न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को प्रधान न्यायाधीश (CJI) के पद की शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में देश के 50वें सीजेआई न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.

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  • Updated On - December 29, 2022 / 10:42 AM IST

न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को प्रधान न्यायाधीश (CJI) के पद की शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में देश के 50वें सीजेआई न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट से बेहद अच्छी तरह वाकिफ हैं, जहां उनके पिता लगभग सात साल और चार महीने तक प्रधान न्यायाधीश रहे थे, जो शीर्ष अदालत के इतिहास में किसी सीजेआई का सबसे लंबा कार्यकाल रहा है. डी वाई चंद्रचूड़ के पिता  22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश रहे.

दो साल का होगा डी वाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 तक दो साल के लिए इस पद पर रहेंगे. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश 65 साल की उम्र में अवकाशग्रहण करते हैं. डी वाई चंद्रचूड़ से पहले उदय उमेश ललित सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई थे, उन्होंने 11 अक्टूबर को ही डी वाई चंद्रचूड़ को अपना उत्तराधिकारी बनाए जाने की सिफारिश की थी.

डी वाई चंद्रचूड़ ने लिए हैं कई अहम फैसले

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था. 13 मई 2016 को उन्होंने शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश बनाए गए थे. वह कई संविधान पीठ और कई ऐतिहासिक फैसले देने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठों का हिस्सा रहे हैं.

29 मार्च 2000 से 31 अक्टूबर 2013 तक वे बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे. उसके बाद उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को जून 1998 में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था और वह उसी वर्ष अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए.

दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए ऑनर्स करने के उन्होंने कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी किया और अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की.

इनमें अयोध्या भूमि विवाद, आईपीसी की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने, आधार योजना की वैधता से जुड़े मामले, सबरीमला मुद्दा, सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने, भारतीय नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने जैसे कई फैसले शामिल हैं.