रायपुर। प्रभु श्री रामलला अयोध्या (Prabhu Shri Ramlala Ayodhya) मे प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपनी सम्पूर्ण दिव्यता और आभा से सुशोभित हैं। प्राणप्रतिष्ठा के पश्चात पहली जन्माष्टमी में बस्तर के श्रमसाधकों द्वारा विशेष रूप से तैयार किए गए पीले खादी सिल्क से निर्मित शुभवस्त्र से सुशोभित प्रभु श्री रामलला की अलौकिक छटा दर्शनीय है।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ जहां के लोगों ने भगवान श्रीराम और माता कौशल्या का सदैव प्रेम और आशीर्वाद पाया है, यहां की माटी में आज भी वही दिव्यता है जो भगवान राम के चरणों से पवित्र हुई है। छत्तीसगढ़ जिसे प्रभु श्री राम के ननिहाल होने का गौरव है यहां पग-पग में प्रभु श्री राम की यादें दिखाई पड़ती है। बस्तर अंचल जिसे दंडकारण्य भी कहा जाता है, जहां प्रभु राम ने वनवास काल का अधिकांश समय व्यतीत किया है, वहां के शिल्पियों द्वारा कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर उनके ननिहाल से भेजा गया विशेष परिधान धारण करना छत्तीसगढ़ के जन-जन के लिए गर्व का क्षण है। मामागांव के परंपरागत वस्त्रों में भांचा राम के सुशोभित होने से सभी छत्तीसगढ़वासियों का हृदय गर्व और असीम आनंद से परिपूर्ण है। यह अद्वितीय वस्त्र हमारी परम्पराओं और संस्कारों का प्रतीक है जो भगवान श्री राम और माता कौशल्या को छत्तीसगढ़ की भूमि से जोड़ता है। यह वस्त्र केवल एक परिधान नही, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा, हमारी अडिग आस्था और भांचा राम के प्रति हमारे प्रेम एवम श्रद्धा का प्रतीक है।
‘भांचा राम‘ के रूप में श्रीराम का प्रेम और आशीर्वाद यहाँ के लोगों के हृदय में सदैव प्रवाहित होता रहा है। छत्तीसगढ़ की पावन माटी आज भी उस स्नेह और श्रद्धा को संजोए हुए है, जिससे माता कौशल्या ने अपने पुत्र को संस्कारित किया। यह वही धरती है जहां श्रीराम ने अपने वनवास के समय अपार प्रेम और सम्मान पाया, यहाँ का एक एक कण आज भी भांचा राम और माता कौशल्या की अनुपम गाथा को संजोए हुए है।
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