वाशिंगटन डीसी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा फैसला लेते हुए H-1B वीज़ा (H1-B visa) आवेदकों पर $100,000 यानी करीब 88 लाख रुपये का शुल्क लगाने की घोषणा की है। यह कदम अमेरिका में इमिग्रेशन पर सख्ती के तौर पर देखा जा रहा है और इसका सीधा असर भारत और चीन के हज़ारों आईटी पेशेवरों पर पड़ने की आशंका है।
ट्रंप का कहना है कि यह निर्णय इसलिए लिया गया है ताकि अमेरिका में सिर्फ “वास्तव में उच्च कौशल वाले” पेशेवर ही आएं और वे अमेरिकी कर्मचारियों की जगह न लें। उन्होंने कहा, “हमें अच्छे और योग्य कामगारों की ज़रूरत है और यह कदम सुनिश्चित करता है कि वही लोग आएं।”
व्हाइट हाउस स्टाफ सेक्रेटरी विल शार्फ ने कहा कि H-1B वीज़ा प्रणाली देश की सबसे ज़्यादा दुरुपयोग की जाने वाली इमिग्रेशन प्रणाली है। उन्होंने कहा, “इस घोषणा से कंपनियों को $100,000 की बड़ी राशि चुकानी होगी, जिससे वे केवल बेहतरीन और उच्च दक्षता वाले कर्मचारियों को ही लाने का निर्णय लेंगी।”
#WATCH | President Donald J Trump signs an Executive Order to raise the fee that companies pay to sponsor H-1B applicants to $100,000.
White House staff secretary Will Scharf says, “One of the most abused visa systems is the H1-B non-immigrant visa programme. This is supposed to… pic.twitter.com/25LrI4KATn
— ANI (@ANI) September 19, 2025
क्या है H-1B वीज़ा?
H-1B वीज़ा एक अस्थायी अमेरिकी वर्क वीज़ा है, जो कंपनियों को विदेशी पेशेवरों को खास तकनीकी क्षेत्रों में काम पर रखने की अनुमति देता है। इसे पहली बार 1990 में शुरू किया गया था। यह वीज़ा तीन साल के लिए जारी होता है और अधिकतम छह साल तक बढ़ाया जा सकता है।
आवेदन की प्रक्रिया में पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होता है, फिर लॉटरी सिस्टम के माध्यम से उम्मीदवारों का चयन किया जाता है। इस वीज़ा से जुड़े उम्मीदवारों को अमेरिकी नागरिकों के बराबर वेतन और कार्यस्थल की शर्तें दी जाती हैं।
भारतीयों पर प्रभाव
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, H-1B वीज़ा धारकों में सबसे अधिक हिस्सा भारतीयों का है। पिछले वर्ष 71 प्रतिशत H-1B वीज़ा भारतीय पेशेवरों को मिले थे, जबकि चीन दूसरे स्थान पर था। 2025 के पहले छह महीनों में Amazon और AWS को 12,000 से अधिक H-1B वीज़ा मंजूर हुए, जबकि Microsoft और Meta को 5,000 से अधिक।
अब ट्रंप के नए नियम से भारतीय पेशेवरों पर आर्थिक बोझ और बढ़ेगा। ग्रीन कार्ड की प्रक्रिया पहले से ही लंबी होती है और जब तक ग्रीन कार्ड नहीं मिलता, वीज़ा का नवीनीकरण करते समय हर बार ₹88 लाख से अधिक खर्च करना पड़ सकता है।
नागरिकता टेस्ट भी होगा कठिन
इसके साथ ही अमेरिका में नागरिकता पाने की प्रक्रिया भी अब और मुश्किल होने जा रही है। ट्रंप प्रशासन ने नागरिकता के लिए 128 सवालों वाले कठिन टेस्ट को दोबारा लागू करने का फैसला किया है, जिसमें आवेदकों को 20 में से कम से कम 12 सवाल मौखिक रूप से सही उत्तर देने होंगे।
‘गोल्ड कार्ड’ वीज़ा का ऐलान
ट्रंप ने एक और बड़ा ऐलान करते हुए ‘गोल्ड कार्ड’ वीज़ा प्रोग्राम की शुरुआत की है, जिसमें व्यक्तियों को अमेरिका आने के लिए $1 मिलियन (लगभग ₹8.8 करोड़) और बिज़नेस के लिए $2 मिलियन देने होंगे। ट्रंप ने कहा कि यह योजना अरबों डॉलर जुटाएगी, जिससे टैक्स कम होंगे और राष्ट्रीय कर्ज भी चुकाया जा सकेगा।
अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने कहा कि यह योजना केवल “शीर्ष स्तर के असाधारण लोगों” के लिए है जो अमेरिका में नौकरियां और व्यवसाय खड़े कर सकें। उन्होंने मौजूदा ग्रीन कार्ड सिस्टम को “असंगत” बताते हुए कहा कि अमेरिका में ऐसे लोग आ रहे हैं जिनकी आमदनी $66,000 सालाना से भी कम है।