वॉशिंगटन डीसी: अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने की संभावना पर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। हालांकि इस साल उनके पुरस्कार जीतने की संभावना बेहद कम मानी जा रही है। ट्रंप लंबे समय से खुद को शांति पुरस्कार का हकदार बताते आ रहे हैं और इसके लिए उन्होंने सार्वजनिक स्तर पर प्रचार भी किया है।
हाल ही में वॉशिंगटन पोस्ट और इप्सोस द्वारा कराए गए एक सर्वे में सामने आया कि करीब आधे रिपब्लिकन समर्थक भी मानते हैं कि ट्रंप को नोबेल पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए। सर्वे में केवल 22 प्रतिशत अमेरिकियों ने कहा कि ट्रंप इसके योग्य हैं।
बुधवार को गाज़ा युद्ध को लेकर घोषित फेज-वन सीजफायर डील के बाद ट्रंप की दावेदारी को थोड़ी मजबूती जरूर मिली है। हालांकि यह डील नोबेल पुरस्कार की घोषणा से ठीक पहले आई, इसलिए इसका असर इस साल के फैसले पर नहीं दिखेगा।
न्यूयॉर्क टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार डेविड सैंगर ने लिखा है कि यदि यह शांति योजना आगे बढ़ती है तो ट्रंप भी उन चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों की तरह नोबेल पुरस्कार के वैध दावेदार हो सकते हैं, जिन्हें पहले यह सम्मान मिल चुका है। हालांकि ट्रंप की शैली में अधिक प्रचार और आक्रामकता है।
पेंसिलवेनिया से डेमोक्रेटिक सीनेटर जॉन फेटरमैन ने कहा है कि यदि ट्रंप गाज़ा और यूक्रेन, दोनों युद्धों को समाप्त कर देते हैं, तो वह स्वयं उनके लिए नोबेल पुरस्कार की सिफारिश करेंगे।
हालांकि ट्रंप की छवि और उनके कुछ विवादास्पद फैसले उनकी दावेदारी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अमेरिका के भीतर विरोधियों पर कानूनी और राजनीतिक हमले, कैरेबियन में ड्रग बोट्स पर हवाई हमले और घरेलू सैन्य बल की तैनाती जैसी घटनाएं उनके खिलाफ जा सकती हैं।
कई विशेषज्ञ इन कार्रवाइयों को कानूनी रूप से संदेहास्पद और कुछ मामलों में युद्ध अपराध की श्रेणी में रखते हैं। ऐसे में यह विरोधाभास पैदा होता है कि एक ओर ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चर्चा में हैं और दूसरी ओर उनके कार्यकाल की कई नीतियां शांति और मानवाधिकार के विपरीत मानी जाती हैं।
इस साल ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना लगभग असंभव है। लेकिन यदि गाज़ा और यूक्रेन में स्थायी शांति की दिशा में उनकी पहल सफल होती है, तो अगले वर्ष वह गंभीर दावेदार बन सकते हैं।