छत्तीसगढ़ में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति: सर्वोच्च न्यायालय के आदेश ने प्रक्रिया को बना दिया और जटिल

By : dineshakula, Last Updated : December 27, 2024 | 3:05 pm

रायपुर, 27 दिसंबर: छत्तीसगढ़ में सूचना आयुक्तों (Information Commissioners) की नियुक्ति अब एक जटिल और पारदर्शी प्रक्रिया बन गई है। सर्वोच्च न्यायालय के छह साल पुराने आदेश ने न केवल सरकारों को जवाबदेह ठहराया है, बल्कि इसमें राजनीतिक नियुक्तियों और सिफारिशों की संभावनाएं भी खत्म कर दी हैं। इस साल छत्तीसगढ़ में दो सूचना आयुक्तों के पद खाली रहने की मुख्य वजह यही नियम हैं।

मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर आईएएस एमके राउत के नवंबर 2022 में रिटायर होने के बाद से यह पद खाली है, और सरकार को तीसरी बार इस पद के लिए आवेदन मंगवाने पड़े हैं। हाल ही में 29 नवंबर को विज्ञापन जारी कर 16 दिसंबर तक आवेदन मांगे गए थे, हालांकि, आवेदनकर्ताओं की सूची अभी तक सामान्य प्रशासन विभाग की वेबसाइट पर अपलोड नहीं की गई है। यह सूची कभी भी चयन प्रक्रिया शुरू होने से पहले अपलोड की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट का अहम आदेश

सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में याचिका संख्या 436/2018 के तहत सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कुछ कठोर दिशा-निर्देश दिए थे। जस्टिस ए. के. सीकरी और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की बेंच ने निर्देश दिया था कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति ऐसे व्यक्तियों से की जानी चाहिए जिनके पास विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, पत्रकारिता, प्रशासन या जनसंपर्क के क्षेत्र में गहरी समझ हो। इसके अलावा, यह भी आदेश दिया गया था कि राजनीतिक दलों से जुड़े लोग और लाभ के किसी पद पर कार्यरत व्यक्ति इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं हो सकते।

इस आदेश के बाद छत्तीसगढ़ में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक चयन समिति बनाई गई, जिसमें मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत और मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल शामिल हैं। हालांकि, डॉ. महंत किसी कारणवश चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाए, और चंद्रवंशी तथा शुक्ला के नाम पर अंतिम निर्णय लिया गया। इन दोनों को सबसे अधिक मापदंडों के अनुरूप पाया गया, जिनमें प्रशासन, विधि और पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुभव था।

वरिष्ठ अधिकारियों की स्थिति

छत्तीसगढ़ में इस साल मार्च में दो सूचना आयुक्तों का कार्यकाल समाप्त हो गया था। इन पदों के लिए 200 से अधिक आवेदन आए थे, जिनमें से कई सेवानिवृत्त आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारी थे, जैसे आईएएस डॉ. संजय अलंग, उमेश कुमार अग्रवाल, आईपीएस संजय पिल्ले, और आईएफएस आशीष कुमार भट्ट। लेकिन, इन सभी की नियुक्ति नहीं हो पाई। चयन समिति ने इन अधिकारियों के मुकाबले आलोक चंद्रवंशी और नरेंद्र कुमार शुक्ला को चुना। शुक्ला, जो सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं, का बायोडाटा सुप्रीम कोर्ट के मापदंडों के अनुसार सबसे बेहतर था।

नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता

सुप्रीम कोर्ट ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पारदर्शी प्रक्रिया की आवश्यकता पर जोर दिया है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक मंत्री शामिल हों। इस प्रक्रिया के तहत छत्तीसगढ़ की चयन समिति में मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष तो निश्चित रूप से शामिल होंगे, लेकिन मंत्री को बदला जा सकता है। इस समय, नियुक्ति के लिए फिर से आवेदन मंगवाए गए हैं, और माना जा रहा है कि शीघ्र ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।

मापदंडों के आधार पर चयन

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत चयन में सात प्रमुख बिंदुओं को ध्यान में रखा जाता है, जिनमें विधि, विज्ञान, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता और प्रशासन के अनुभव की जांच की जाती है। इस बार के चयन में डॉ. संजय अलंग जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को इसलिए हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने इन क्षेत्रों में अपने योगदान का उल्लेख नहीं किया था। वहीं, नरेंद्र शुक्ला और आलोक चंद्रवंशी के बायोडाटा में इन सभी बिंदुओं का उल्लेख था, जिससे उनकी नियुक्ति संभव हो पाई।

इस प्रकार, छत्तीसगढ़ में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति अब एक नई और कठोर प्रक्रिया से गुजर रही है, जिसमें केवल योग्य और अनुभव से भरपूर उम्मीदवार ही चयनित हो पा रहे हैं। यह प्रक्रिया सरकारों को जवाबदेह बनाने के साथ-साथ सूचना के अधिकार के प्रभावी कार्यान्वयन में मददगार साबित हो रही है।