छत्तीसगढ़ में NGO घोटाले की CBI जांच तेज, मंत्री और IAS अफसरों पर बड़ा आरोप

इस घोटाले में एक मंत्री और सात आईएएस अफसरों सहित कुल 14 लोगों के नाम सामने आए हैं। इन पर करोड़ों रुपये के सरकारी फंड के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप है।

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  • Publish Date - October 7, 2025 / 12:29 PM IST

रायपुर, छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित NGO घोटाले (NGO Scam) की जांच अब तेज हो गई है। केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी CBI ने मामले में कार्रवाई शुरू करते हुए रायपुर के माना स्थित समाज कल्याण विभाग के दफ्तर में दबिश दी। अधिकारियों ने स्टेट रिसोर्स सेंटर से जुड़े दस्तावेज मांगे और NGO से संबंधित तीन बंडल की फोटोकॉपी भी ली। जांच एजेंसी ने कहा है कि दस्तावेजों की गहराई से जांच होगी और आगे की कार्रवाई की जाएगी।

इस घोटाले में एक मंत्री और सात आईएएस अफसरों सहित कुल 14 लोगों के नाम सामने आए हैं। इन पर करोड़ों रुपये के सरकारी फंड के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार का आरोप है।

ये पूरा मामला 2004 में शुरू हुआ था जब तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री रेणुका सिंह, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी विवेक ढांढ, एमके राउत, डॉ. आलोक शुक्ला, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल, सतीश पांडे और पीपी श्रोती ने मिलकर दो NGO बनाए। इनके साथ राज्य प्रशासनिक सेवा के छह और अधिकारी भी जुड़े।

इन NGOs को दिव्यांगजनों की सहायता और देखरेख के नाम पर बनाया गया था। इनके तहत व्हीलचेयर, सुनने की मशीन, कृत्रिम अंग, ट्राई साइकिल जैसी चीजें बांटने और जागरूकता फैलाने का काम किया जाना था, लेकिन ये संस्थाएं केवल कागजों पर मौजूद थीं।

NGO को समाज कल्याण विभाग से कोई मान्यता नहीं मिली थी, फिर भी केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का पैसा सीधे इसके खाते में ट्रांसफर किया गया। यह घोटाला करीब 14 साल तक चला और किसी ने सवाल नहीं उठाया।

सरकारी नियमों के अनुसार कोई भी कर्मचारी किसी NGO का सदस्य नहीं हो सकता, लेकिन इस नियम को दरकिनार कर अधिकारियों ने खुद ही संस्था चला ली। संस्था के बनने के 45 दिन में चुनाव होना चाहिए था लेकिन 17 साल तक कोई चुनाव या प्रबंधन की बैठक नहीं हुई और न ही इसका ऑडिट किया गया।

घोटाले का खुलासा 2016 में तब हुआ जब कुंदन ठाकुर नाम के एक संविदा कर्मचारी ने अपने पद को रेगुलर कराने की कोशिश की। इस दौरान उन्हें पता चला कि उनके नाम से एक दूसरी जगह से 2012 से वेतन निकाला जा रहा है। कुंदन ने RTI लगाई और जांच में सामने आया कि रायपुर में 14 और बिलासपुर में 16 ऐसे कर्मचारी हैं जो दो-दो जगह पर दिखाए गए हैं।

RTI से यह भी सामने आया कि कई लोग ऐसे थे जो असल में काम ही नहीं कर रहे थे लेकिन उनके नाम पर सैलरी निकल रही थी। एक ही व्यक्ति को दो-तीन जगह पदस्थ दिखाया गया था। फर्जी नियुक्तियां की गईं और उनके नाम पर वेतन जारी होता रहा।

केवल पांच साल में ऐसे फर्जी कर्मचारियों का सालाना वेतन 34 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 70 लाख रुपए तक पहुंच गया। 2004 से 2018 तक इन NGOs के खातों में समाज कल्याण विभाग और उसकी शाखाओं से करोड़ों रुपये ट्रांसफर किए गए।

अब CBI इस पूरे मामले की परतें खोलने में जुटी है और भ्रष्टाचार में शामिल सभी लोगों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है।