सुकमा: छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में लगातार हो रही शिक्षा दूतों की हत्याओं को लेकर सुकमा पुलिस (Sukma Police) ने नक्सलियों के खिलाफ सीधी मोर्चाबंदी शुरू कर दी है। पुलिस ने एक मीम जारी कर नक्सलियों की सोच को उजागर किया है, जिसमें बताया गया है कि वे क्यों बार-बार शिक्षा दूतों को निशाना बना रहे हैं।
पुलिस का कहना है कि नक्सली नहीं चाहते कि आदिवासी बच्चे पढ़ें-लिखें और आगे बढ़ें। इसलिए वे शिक्षा दूतों की हत्या कर समाज को अंधकार में रखना चाहते हैं। पुलिस का संदेश साफ है – नक्सलियों की सबसे बड़ी दुश्मन बंदूक नहीं, किताब है।
सुकमा के एसपी किरण चव्हाण ने कहा कि अशिक्षा ही नक्सलियों का सबसे बड़ा हथियार है। जहां शिक्षा रुकती है, वहीं विकास भी रुक जाता है। अगर आदिवासी बच्चे शिक्षित हो गए, तो वे नक्सलवाद से दूर हो जाएंगे। उन्होंने जनता से अपील की कि नक्सलियों के इस असली चेहरे को समझें और बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट न आने दें।
बीते कुछ वर्षों में बीजापुर और सुकमा जिलों में नक्सलियों ने 9 शिक्षा दूतों की हत्या की है। इनमें बीजापुर में 5 और सुकमा में 4 शिक्षक मारे गए। हाल ही में तीन दिनों के भीतर बीजापुर के गंगालूर में कल्लू ताती और सुकमा के सिलगेर में लक्ष्मण बारसे की हत्या कर दी गई।
नक्सली बंद पड़े स्कूलों को फिर से खुलने और शिक्षा दूतों की तैनाती का लगातार विरोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि यह सरकार का एजेंडा है, लेकिन हकीकत यह है कि स्कूलों के खुलने से गांव के बच्चे फिर से पढ़ाई की ओर लौट रहे हैं – और यही बात नक्सलियों को मंजूर नहीं है।