रायपुर। इस बार का 2024 लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha elections) की जंग कुछ अलग ही अंदाज में दिख रही है। इसमें सभी छोटे-बड़े दल वोटों के ध्रुवीकरण के लिए कोई भी मुद्दा हाथ से नहीं जाने देना चाहते हैं। एनडीए गठबंधन और इंडिया गठबंधन के पाले में अपनी ओर छोटे-छोटे दलों को खींचने के लिए बीजेपी और कांग्रेस (BJP and Congress) जुटी है। लेकिन कुछ राजनीति विसंगतियां भी देखने को मिल रही है। दोनों गठबंधन का हाल ये है कि तमाम दल अब एक गठबंधन से दूसरे गठबंधन में शामिल हो रहे हैं। क्षेत्रप की राजनीति करने वाले जातिगत वोटों की जमीन वाले छोटे दलों की संख्या ज्यादा है। बिहार में जहां इंडी गठबंधन में नीतीश बाबू थे, वे लोकसभा चुनाव के नजदीक आते-आते एनडीए में शामिल हो गए और बीजेपी के साथ मिलकर दोबारा सीएम की शपथ ले ली। इसके अलावा कांग्रेस सहित तमाम दलों के नेताओं में अब बीजेपी में शामिल होने की होड़ मची है।
भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह पार्टी के साथ-साथ एनडीए गठबंधन को मजबूत बनाने के मिशन पर जुटे हैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 400 पार लोकसभा सीटों को जीतने का दावा करते नजर आ रहे हैं। यही कारण भी है कि साउथ इंडिया के राज्यों की सीटों पर फोकस करते हुए चुनावी दौरे पर हैं। इन सबके बीच कांग्रेस के मुख्य चेहरे राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा में पीएम मोदी पर लगातार वार करते रहे। अभी हाल ही में राहुल गांधी ने शक्ति के विरोध करने वाले बयान को पीएम मोदी ने चुनावी हथियार बना लिया।
राहुल गांधी के शक्ति के बयान से पूर्व बिहार की एक जनसभा में पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने परिवारवाद पर कहा था, मोदी का कोई परिवार नहीं है, वे परिवार का क्या दर्द जाने। इस बयान को भी बीजेपी ने हाथो हाथ लेते हुए बड़ा चुनावी मुद्दा बनाते हुए पार्टी का एक देशव्यापी अभियान ही छेड़ दिया। पीएम मोदी ने कहा था, मेरा परिवार मेेरे देशवासी है। फिर क्या था, शुरू हुआ मैं हूं मोदी का परिवार। वैसे मोदी हर मोर्चे पर कांग्रेस ही नहीं पूरे इंडी गठबंधन पर भारी पड़ रहे हैं। इसके पीछे कारण है कि राहुल का एक और बयान था, मोदी जी ओबीसी नहीं हैं। और न जाने कितने ऐसे उनके भाषण थे। जिसे पीएम मोदी ने बड़े ही जबरदस्त तरीके से पलटवार किया।
राजनीति के जानकार तो कहते हैं कि मोदी जी हैट्रिक लगाकर तीसरी बार तो पीएम बनेंगे ही। यहां लड़ाई बीजेपी 400 पार सीटों के लिए लड़ रही है। संभव है कि यह करिश्मा भी बीजेपी मोदी के दम कर सकती है। इसके पीछे तर्क है कि बीजेपी का बूथ स्तर का मैनेजमेंट अन्य सभी विरोधी पार्टियों से काफी आगे हैं। यही कारण है की मोदी की गारंटी का डंका देश में बज रहा है। वजह है, कश्मीर से 370 धारा, राम मंदिर सहित कई क्रांतिकारी फैसले माेदी सरकार ने लिए हैं। इसके अलावा मोदी की राज्यों में मोदी की गारंटी चल रही है। जिसका फर्क साफ तौर पर चुनाव के मतगणना के दिन दिखेगा। बीजेपी और माेदी मैजिक कितना चलेगा, ये तो 4 जून को ही पता चल पाएगा।
आइए इसके बहाने अब हम बात करते हैं कि छत्तीसगढ़ के राजनीतिक परिद्ष्य में उन घटनाक्रमों की जो पिछले एक पखवाड़े में घटी। इसमें सबसे पहले तो बीजेपी ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी के संगठन में मची गुटबाजी और कांग्रेस के नाराज नेताओं के बयानों को मुद्दा बनाया। जिससे बीजेपी ने जनता में एक फीडबैक दिया कि ये तो खुद ही उलझे हैं। वे कैसे जनता के हितों को सुलझाएंगे, क्योंकि पांच साल उनके हाथों में प्रदेश की सत्ता थी।
दूसरा कांग्रेस काल में हुए घोटालों की काली स्याह जो जांच में उजागर हो रही वो सच्चाई को बड़े ही सलीके से मंच और सोशल मीडिया के माध्यम से कांग्रेस पर वार। चाहे वह शराब घोटाला, कोयला घोटाला, डीएमएफ फंड घोटाला, पीएससी परीक्षा भर्ती घोटाला, चावल घोटाला यानी घोटाले का एक ऐसा गुलदस्ता सजा दिया, जिससे छांव में कांग्रेस का पंजा मुरझाया नजर आ रहा है। क्योंकि कांग्रेस जो दलीलें हैं वे सिर्फ इतनी है कि राजनीतिक द्वेषवश केस हुए हैं। लेकिन कोर्ट से भी अभी तक जेल में बंद उनके कांग्रेस खास नेता और अधिकारी अभी छूटे नहीं हैं। ईडी के कुछ ऐसे सबूत जो सार्वजनिक हुए, इसके चलते जनता में कांग्रेस की छवि धुंधली सी दिख रही है।
बहरहाल, ये कांग्रेस का अंदरूनी मामला था, लेकिन बीजेपी ने इसके बहाने कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती सरकार ने पब्लिक सेक्टर में घोटाले तो किए ही थे, अब कांग्रेस के लोग अपनी ही पार्टी के फंड में भी गबन करने लगे हैं।
ऐसे बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस नेताओं को पता है कि जनता में मोदी की गारंटी की लहर चल रही है। यही वजह है कि वे अपनी पार्टी के अंदर मचे घमासान को भी बीजेपी को ही कारण बता रहे हैं। क्योंकि इनके पास जनता के सामने जबाव देने के लिए कुछ बचा नहीं है। घोटालों की लंबी फेहरिस्त पर कांग्रेस घबराई हुई है। इनके नेता चुनाव लड़ने तक से डर रहे हैं। जबकि कांग्रेस भी बीजेपी पर अपने तरीके से सियासी पलटवार कर रही है। लेकिन ये सच है कि बयानों और सियासी घटना क्रम भी जनता में बड़ा फर्क पैदा करते हैं।
नजीर के तौर पर कांग्रेस जब सता में थी, तब भी पार्टी के अंदर की गुटबाजी का नजारा दिखा था। चाहे वह भूपेश-टीएस सिंहदेव के ढाई-ढाई साल सीएम का मुद्दा हो या अपने ही मंत्री पर विधायक बृहस्पति सिंह द्वारा जान से खतरे का अारोप। वैसे कांग्रेस की गुटबाजी और अंदुरुनी घमासान अब किसी से छिपा नहीं।
वैसे बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 35 विधायक जीते हैं। यही कारण भी है कि कांग्रेस को बीजेपी थोड़ा भी हल्के में नहीं ले रही है और कांग्रेस पर आक्रामक रणनीति के साथ बीजेपी सियासी वार करने में जुटी है। ताकि इस बार छत्तीसगढ़ में लोकसभा की सभी 11 की 11 सीटें हासिल कर क्लीन स्वीप किया जा सके।
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