दिल्ली ब्लास्ट: ड्राफ्ट ईमेल और प्राइवेट थ्रीमा सर्वर से होती थी आतंकियों की गुप्त बातचीत

वे कोई मेल भेजते नहीं थे, बल्कि संदेश लिखकर ड्राफ्ट में सेव कर देते थे। जिसे संदेश पढ़ना होता था, वह उसी ईमेल आईडी में लॉगिन कर ड्राफ्ट पढ़ लेता और उसे तुरंत डिलीट कर देता।

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  • Updated On - November 15, 2025 / 10:27 PM IST

नई दिल्ली:  लाल किले के पास हुए धमाके की जांच के दौरान सामने आया है कि आतंकियों ने सुरक्षा एजेंसियों की निगाह से बचने के लिए बेहद असामान्य और बेहद गुप्त तरीका अपनाया—ड्राफ्ट ईमेल (draft email) के जरिए संवाद

जांच अधिकारियों के अनुसार, संदिग्धों में शामिल डॉ. उमर-उन-नबी, जो कथित तौर पर विस्फोटक कार चला रहा था, और उसके साथी डॉ. मुज़म्मिल गणाई और डॉ. शाहीन शाहिद एक ही ईमेल अकाउंट का उपयोग करते थे।

वे कोई मेल भेजते नहीं थे, बल्कि संदेश लिखकर ड्राफ्ट में सेव कर देते थे। जिसे संदेश पढ़ना होता था, वह उसी ईमेल आईडी में लॉगिन कर ड्राफ्ट पढ़ लेता और उसे तुरंत डिलीट कर देता। इस तरह कोई डिजिटल ट्रेल नहीं बनता था और कोई संदेश इंटरनेट पर ट्रांसमिट भी नहीं होता था। पुलिस के मुताबिक इसका मकसद था निगरानी से बचना और बातचीत का कोई रिकॉर्ड न छोड़ना।

अधिकारियों का कहना है कि यह तरीका दिखाता है कि मॉड्यूल के भीतर योजना कितनी सावधानी से बनाई जा रही थी।

जांच में यह भी पता चला कि मॉड्यूल के सदस्य लगातार संपर्क में रहते थे और इसके लिए वे स्विट्ज़रलैंड के एन्क्रिप्टेड ऐप Threema और अन्य गुप्त संचार ऐप का इस्तेमाल करते थे।

एक अधिकारी ने बताया,
“Threema फोन नंबर या ईमेल आईडी की जरूरत नहीं करता, इसलिए उसका पता लगाना बेहद मुश्किल हो जाता है।”

ऐप हर यूज़र को एक यूनिक आईडी देता है जो किसी मोबाइल नंबर या सिम से जुड़ी नहीं होती। साथ ही, इसमें एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन होता है और इसे प्राइवेट सर्वर पर भी चलाया जा सकता है।

पुलिस को शक है कि आरोपी डॉक्टरों ने अपना प्राइवेट थ्रीमा सर्वर तैयार किया था, जिसके जरिए वे संवेदनशील डॉ큐मेंट, नक्शे और लोकेशन लेआउट साझा करते थे। जांच में यह बात भी सामने आई है कि लोकेशन शेयरिंग, टास्क वितरण और ब्लास्ट से जुड़े कई स्तरों की प्लानिंग इसी नेटवर्क पर हुई।

थ्रीमा में मैसेज दोनों ओर से डिलीट करने का विकल्प होता है और ऐप किसी तरह का मेटाडेटा स्टोर नहीं करता, जिससे जांच और मुश्किल हो जाती है।

पुलिस के प्रारंभिक निष्कर्ष बताते हैं कि इस ऐप के जरिए मॉड्यूल के सदस्य आपस में कोडेड संदेश और प्रतिबंधित सामग्री शेयर करते थे।