नई दिल्ली (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)और भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में हराकर सत्ता से बाहर करने का मंसूबा पाले बैठे नीतीश कुमार बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों का बड़ा सम्मेलन करने जा रहे हैं। इस बीच भाजपा ने अपनी रणनीति के तहत विरोधी दलों के बीच मौजूद अंतर्विरोध और टकराव को और ज्यादा उभारने का प्रयास करना शुरू कर दिया है। जिस बिहार में नीतीश कुमार विपक्षी दलों की एकता का बिगुल बजाने का प्रयास कर रहे हैं, उसी बिहार में लंबे समय तक जेडीयू-भाजपा गठबंधन सरकार में उनके साथ उपमुख्यमंत्री रह चुके वर्तमान भाजपा राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी यह सवाल पूछ रहे हैं कि मोदी के मुकाबले कौन? सुशील मोदी ‘हाथ मिलाने से दिल नहीं मिलने’ की बात कहते हुए विपक्षी एकता के तमाम पैरोकारों को अपना नेता चुनने की चुनौती भी दे रहे हैं।
वहीं दिल्ली में अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल इशारों-इशारों में यह कटाक्ष भी कर रहे हैं कि विपक्ष में नेता बनने के लिए बिहार से लेकर तेलंगाना तक पहले से ही कई दावेदार हैं और अब इस रेस में दिल्ली वाले (केजरीवाल) भी शामिल हो गए हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी और ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के बीच चल रहे राजनीतिक वार-प्रतिवार का जिक्र करते हुए पूछ रही है कि बंगाल में लड़ाई और दिल्ली में दोस्ती, यह कौन सी राजनीति है? केरल में भी लेफ्ट फ्रंट और कांग्रेस की लड़ाई के मसले को लेकर लगातार सवाल पूछा जा रहा है।
वहीं केजरीवाल और कपिल सिब्बल के रामलीला मैदान में एक मंच पर नजर आने की आलोचना करते हुए भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा पूछ रहे हैं कि जिन सिब्बल को केजरीवाल भ्रष्टाचारी कह रहे थे, आज उन्हीं को अपने मंच पर ला रहे हैं।
नीतीश कुमार द्वारा बुलाई गई बैठक में बीआरएस मुखिया के.चंद्रशेखर राव, बसपा सुप्रीमो मायावती, बीजेडी मुखिया नवीन पटनायक और जेडीएस सहित अन्य कई विरोधी दलों के शामिल नहीं होने पर भी भाजपा कटाक्ष कर रही है।
दरअसल, भाजपा विपक्षी मोर्चे के गठन को लोकसभा चुनाव में बेअसर करने के लिए एक साथ कई मोर्चो पर काम कर रही है। उत्तर प्रदेश की तर्ज पर भाजपा अन्य राज्यों में भी छोटे दलों के साथ गठबंधन कर अपने जनाधार को 50 प्रतिशत मत तक ले जाने की कोशिश करेगी और अखिलेश यादव-मायावती गठबंधन की तर्ज पर विपक्षी दलों के गठबंधन के अंदर मौजूद अंतर्विरोध और टकराव को ज्यादा से ज्यादा उभारने की कोशिश कर उनके कार्यकर्ताओं और सीधे मतदाताओं को राजनीतिक संदेश देने का प्रयास करेगी।