छत्तीसगढ़ के ‘कण-कण’ में बसे हैं प्रभु श्रीराम! दूरस्थ ‘वनांचलों’ में स्मृतियों के साक्ष्य

अयोध्या में श्री रामलला के प्राण प्रतिष्ठा (Life consecration of Shri Ramlala) को लेकर देश में खुशी और उमंग का वातावरण है।

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  • Updated On - January 21, 2024 / 09:44 PM IST

छत्तीसगढ़। अयोध्या में श्री रामलला के प्राण प्रतिष्ठा (Life consecration of Shri Ramlala) को लेकर देश में खुशी और उमंग का वातावरण है। प्रभु श्रीराम के ननिहाल छत्तीसगढ़ में भी उत्सव और आनंद का माहौल है। मुख्यमंत्री  विष्णु देव साय (Chief Minister Vishnu Dev Sai) की पहल पर इस ऐतिहासिक पल की यादों को संजोने के लिए पूरे छत्तीसगढ़ में 22 जनवरी को रामोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। दरअसल प्रभु श्रीराम के वनवास काल की यादें आज भी छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों में बिखरी हुई हैं। इन स्मृतियों को संजोने का काम किया जा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि छत्तीसगढ़ की कण-कण में राम बसते हैं।

श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर छत्तीसगढ़ में जगह-जगह आयोजन हो रहे हैं। मंदिरों की साफ-सफाई, मानस गान सहित मंदिरों में भण्डारे जैसे आयोजन किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने छत्तीसगढ़ के लोगों से 22 जनवरी को दीपोत्सव का आयोजन की अपील की है।

  • छत्तीसगढ़ में माता शबरी की नगरी, शिवरीनारायण और माता कौशल्या की नगरी चंदखुरी में भव्य रामोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। पूरे मंदिर परिसर की आकर्षक सजावट की गई है। इस मौके पर दीपोत्सव का आयोजन भी किया जा रहा है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर छत्तीसगढ़ के हर घर में अपार उत्साह और उमंग का माहौल है। लोग स्वस्फूर्त ढंग से अपने घरों की सजावट कर रहे हैं।

प्रभु श्रीराम का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा है। ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था, संभवतः इसी आधार पर श्री राम को कोशलाधीश कहा जाता है। दक्षिण कोसल को ही श्रीराम का ननिहाल कहा जाता है। प्रभु श्रीराम ने वनवास काल का अधिकांश समय यहीं बिताया इसकी स्मृति चिन्ह भी अनेक स्थानों पर मौजूद हैं। यह भी मान्यता है कि बलौदाबाजार के तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम में माता सीता ने पुत्र लव और कुश को जन्म दिया था। श्रीराम के पुत्र कुश की राजधानी श्रावस्ती (वर्तमान में सिरपुर, जिला महासमुन्द) में होने के प्रमाण विभिन्न ग्रंथों में मिलते हैं। सिहावा क्षेत्र को सप्तऋषियों की तपोभूमि कहा जाता है। जनश्रुतियों के अनुसार सिहावा के प्राचीन मंदिर कर्णेश्वर मंदिर का संबंध त्रेतायुग से बताया जाता है।

पूरे देश में संभवतः छत्तीसगढ़ ही ऐसा राज्य है जहां लोग अपने भांजे के पैर छूकर प्रणाम करते हैं। कहा जाता है कि दक्षिण कोसल श्रीराम का ननिहाल होने के कारण उन्हें समूचे छत्तीसगढ़ का भांजा माना जाता है और यहां के लोग प्रभु श्री राम को श्रद्धा पूर्वक प्रणाम करते हैं। इसी कारण यहां के लोग अपने भांजे को श्रीराम का स्वरूप मानते हुए प्रणाम करते हैं और यह परिपाटी पूरे प्रदेश में है।

  • रामचरित मानस के बालकांड, किष्किंधा कांड और अरण्यक कांड में त्रेतायुग के ऋषि मुनियों को सताने वाले, उनके यज्ञ का ध्वंस करने वाले राक्षसों का वर्णन है। वनवास काल में ही इन्हीं राक्षसों का वध प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण द्वारा किए जाने का उल्लेख है। तत्कालीन दंडक क्षेत्र वर्तमान में बस्तर संभाग के अधिकांश जिलों में सम्मिलित है।

वनवास के दौरान माता सीता का अपहरण किए जाने के पश्चात उनकी खोज में प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण वन में यत्र तत्र भटकते रहे। इसी बीच उनकी भेंट शबरी माता से हुई, जिनके जूठे बेर प्रभु ने ग्रहण किए। शिवरीनारायण मंदिर (जिला जांजगीर) में स्थापित मंदिर में इसके अनेकों प्रमाण उपलब्ध हैं। मंदिर प्रांगण में एक अतिप्राचीन बरगद का पेड़ है जिसके पत्ते आज भी दोना के आकार में मुड़े हुए हैं।

ऐसी मान्यता है कि शबरी ने इसी पेड़ के पत्तों से दोना बनाकर प्रभु श्रीराम को जूठे बेर परोसे थे। यहीं समीप के ग्राम खरौद में लक्ष्मणेश्वर मंदिर है जहां राम के अनुज लक्ष्मण ने शक्ति बाण के दुष्प्रभाव से मुक्त होने यहां स्थित प्राचीन शिवलिंग पर चावल के एक लाख साबूत दाने चढ़ाए थे। इसके बाद वे मेघनाथ के द्वारा चलाए गए शक्ति बाण के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो गए।

सरगुजा की सीताबेंगरा की गुफा को विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला माना जाता है। इस गुफा का इतिहास प्रभु श्री राम के वनवासकाल से जुड़ा है। कहा जाता है कि वे माता सीता और लक्ष्मण ने वनवास के समय उदयपुर ब्लॉक अंतर्गत रामगढ़ की पहाड़ी और जंगल में समय व्यतीत किया था। रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली एक गुफा भी है जिसे सीताबेंगरा के नाम से जाना जाता है।

सीताबेंगरा का शाब्दिक अर्थ है सीता माता का निजी कक्ष। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस जगह पर विश्व की सबसे प्राचीनतम नाट्यशाला है, जहां पर उस समय लोग नाटकों का यहां मंचन किया करते थे। यह भी मान्यता है कि त्रेता युग में प्रभु श्री राम का खल्लारी (वर्तमान में जिला महासमुन्द) आगमन हुआ था, इस स्थान को द्वापर युग में खलवाटिका नगरी के नाम से जाना जाता था। यह भी मान्यता है कि प्रभु श्रीराम जिस नाव से यहां आए थे, अब वो पत्थर में तब्दील हो चुका है, और वो वैसा का वैसा ही है।

  • आलेख-ताराशंकर सिन्हा (जनसंपर्क विभाग)

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