Anti-Naxal Operation: बसवराजू की मौत पर माओवादियों का खुलासा – “घेराबंदी, गद्दारी और भूख ने छीना हमारा नेता”

By : dineshakula, Last Updated : May 26, 2025 | 9:42 pm

रायपुर, 26 मई 2025: अबूझमाड़ के जंगलों में हुए बड़े नक्सली ऑपरेशन के बाद माओवादियों ने आधिकारिक पत्र जारी कर अपनी चुप्पी तोड़ी है। इस पत्र में उन्होंने अपने शीर्ष इनामी नेता बसवराजू उर्फ बीआर दादा की मौत की पूरी कहानी बताई है। बसवराजू पर ₹1.5 करोड़ का इनाम था और उसकी मौत को माओवादी नेतृत्व ने “एक बड़ी रणनीतिक चूक और विश्वासघात का नतीजा” बताया है।

“हमें मुठभेड़ की आशंका थी, सुरक्षा घटाना मजबूरी थी”

पत्र में माओवादियों ने दावा किया है कि उन्हें पहले से इस मुठभेड़ की आशंका थी, लेकिन सुरक्षा बलों के दबाव और अपने ही यूनिट के लोगों के आत्मसमर्पण के चलते बसवराजू की सुरक्षा घटानी पड़ी। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि बसवराजू सेफ जोन में जाने के लिए तैयार नहीं थे, इसी वजह से वे सुरक्षा बलों के घेरे में आ गए।

मुठभेड़ में 28 नक्सलियों की मौत का दावा

सरकारी आंकड़ों में 27 नक्सलियों के मारे जाने की बात कही गई थी, लेकिन माओवादियों ने पत्र में 28 नक्सलियों के नाम जारी किए हैं। उनका दावा है कि सभी “जन क्रांतिकारी” अंतिम सांस तक डटे रहे और कई जवानों को घायल भी किया।

“गद्दारों ने खोला राज, यही बना मौत का कारण”

पत्र में माओवादियों ने आरोप लगाया है कि बीते 6 महीनों में माड़ क्षेत्र के कई नक्सली सरेंडर कर सुरक्षा बलों का साथ देने लगे। इनमें से कुछ माओवादी सीवीपीसी सदस्य और यूनिफाइड कमांड के लोग भी थे, जो ऑपरेशन की जानकारी सुरक्षा बलों को देने लगे। इन्हीं गद्दारों के कारण पुलिस को बीआर दादा के मूवमेंट और ठिकाने की सटीक जानकारी मिली, जिसके बाद यह ऑपरेशन अंजाम दिया गया।

ऑपरेशन की पूरी टाइमलाइन बताई

माओवादी पत्र के अनुसार,

  • 17 मई: नारायणपुर व कोंडागांव से डीआरजी की तैनाती शुरू हुई।

  • 18 मई: दंतेवाड़ा, बीजापुर और बस्तर फाइटर्स की टीमें जुड़ीं।

  • 19 मई सुबह 10 बजे: पहली मुठभेड़ हुई।

  • 20 मई: दिनभर घेराबंदी से निकलने की नाकाम कोशिशें।

  • 20 मई रात: हजारों जवानों ने पूरा इलाका घेर लिया।

  • 21 मई सुबह: अंतिम हमला हुआ।

इस दौरान माओवादी कहते हैं कि उनके पास सिर्फ 35 लड़ाके थे, जो 60 घंटे से भूखे-प्यासे थे, जबकि पुलिस के पास हेलिकॉप्टर सप्लाई, आधुनिक हथियार और भारी संख्या में फोर्स थी।

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“हमने आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी”

पत्र में बताया गया कि शुरुआती फायरिंग में डीआरजी के जवान कोटलू राम मारा गया। बाद में माओवादी कमांडर चंदन के शहीद होने के बाद भी, उनकी टीम ने प्रतिरोध जारी रखा। एक टीम घेराबंदी तोड़ने में सफल हुई, लेकिन मुख्य दस्ते से अलग हो गई। अंत में, जब सभी माओवादी मारे गए, तब बीआर दादा को जिंदा पकड़कर मार दिया गया, ऐसा माओवादियों का दावा है।

आगे की रणनीति: युवा विंग को मजबूत करेंगे

माओवादियों ने पत्र के अंत में लिखा है कि वे अब युवा विंग को मजबूत करने पर जोर देंगे और जनता के जल-जंगल-जमीन की लड़ाई को और तेज करेंगे। साथ ही, उन्होंने इस पूरे अभियान को “कॉर्पोरेट हितों के लिए जनता को उजाड़ने की साजिश” बताया।