नई दिल्ली: हाल ही में प्रकाशित एक मेडिकल अध्ययन के अनुसार, क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन (Chronic Inflammation) यानी लंबे समय तक शरीर में बनी रहने वाली सूजन, महिलाओं में कमजोरी, सामाजिक असमानता और हृदय रोग (Cardiovascular Disease – CVD) के बढ़ते खतरे से जुड़ी पाई गई है। यह शोध प्रतिष्ठित कम्युनिकेशंस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन में 2,000 से अधिक महिलाओं (आयु 37 से 84 वर्ष) के ब्लड सैंपल का विश्लेषण किया गया।
वैज्ञानिकों ने इनमें 74 सूजन से संबंधित प्रोटीन की जांच की।
उद्देश्य था यह समझना कि सूजन किस तरह सामाजिक वंचनाओं, शारीरिक कमजोरी और हृदय रोग से जुड़ती है।
शोधकर्ताओं ने 10 ऐसे प्रोटीन की पहचान की, जो कमजोरी और सामाजिक रूप से वंचित परिवेश से जुड़े पाए गए।
इनमें से 4 प्रोटीन (TNFSF14, HGF, CDCP1 और CCL11) हृदय रोग के जोखिम से भी जुड़े मिले।
विशेष रूप से – CDCP1 प्रोटीन का संबंध धमनियों के संकुचन या अवरोध जैसी हृदय संबंधी गंभीर समस्याओं से पाया गया।
“हमने सूजन से संबंधित प्रोटीन का विश्लेषण कर यह समझने की कोशिश की कि कमजोरी और सामाजिक तनाव कैसे हृदय स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं। हमें संकेत मिले कि इन जोखिमों के बीच साझा जैविक मार्ग (biological pathway) मौजूद है।”
“कमजोरी, सामाजिक असमानता और हृदय रोग को अक्सर एक साथ देखा जाता है, लेकिन इनके बीच जैविक संबंध पहले स्पष्ट नहीं थे। अब हमारे निष्कर्ष यह सुझाव देते हैं कि सामाजिक तनाव सूजन को बढ़ा सकता है, जिससे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है।”
प्रोटीन बायोमार्कर्स के रूप में काम कर सकते हैं — यानी, डॉक्टरों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि कौन-से लोग हृदय रोग के उच्च जोखिम में हैं।
अगर निष्कर्ष और पुष्ट होते हैं, तो इससे न केवल सूजन को कम करने वाली चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा मिल सकता है, बल्कि सामाजिक असमानता घटाने वाली नीतियों के जरिए भी स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है।
यह शोध इस ओर इशारा करता है कि मेडिकल और सामाजिक नीति दोनों का मिलाजुला प्रयास हृदय रोग को रोकने में प्रभावी हो सकता है।