“बस्तर एनकाउंटर पर वरिष्ठ पत्रकार रश्मि का भावपूर्ण विचार”

उन्होंने उस घटना पर रोशनी डाली जिसमें सात “नक्सली” मारे गए, लेकिन साथ ही उनके लिए एक टीस भी महसूस की।

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  • Updated On - December 19, 2024 / 03:35 PM IST

छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ पत्रकार रश्मि ने अपने फेसबुक पोस्ट में बस्तर के अबूझमाड़ जंगल में हुए नक्सल एनकाउंटर (Naxal Encounter) पर गहराई से लिखा है। उन्होंने उस घटना पर रोशनी डाली जिसमें सात “नक्सली” मारे गए, लेकिन साथ ही उनके लिए एक टीस भी महसूस की।

उन्होंने लिखा:

छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक विशाल जंगल है जिसका नाम है अबूझमाड़, अक्सर खबरों में ज़िक्र रहता ही है इस जंगल का, क्यूंकि कई ख़ूँख़ार #नक्सलियों का गढ़ माना जाता रहा है ये इलाका।

पिछले कुछ महीनों में खूब नाम कमाया अबूझमाड़ ने क्यूँकि बड़ी तादाद में नक्सली यहाँ मारे गए हैं जिनमें बड़े कैडर भी शामिल थे ।

ये कहानी ऐसे ही एक एनकाउंटर की है जिसमें सात “नक्सली” मारे गए थे वो भी गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ आगमन से दो दिन पहले ।

ख़ुशियाँ मनाते सब झूम रहे थे, हम भी ख़ुशख़बरी लिख रहे थे, मन में एक टीस के साथ। “ये कैसी टीस है,” मैंने सोचा, “ये जो मारे जा रहे हैं, ये हमारे ही प्रदेश के भटके हुए युवा हैं जिनके पास हथियार उठाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था, और सरेंडर करने की हिम्मत सबमें नहीं होती,” मन से आवाज़ आई, दुख हुआ इस बार उन युवाओं के लिए भी, जिन्हें अब भी कोई रास्ता नहीं सूझता और वो ताबड़तोड़ गोली खाकर मर जाते हैं ।

कुछ दिनों बाद पता चलता है कि अबूझमाड़ के एनकाउंटर में उस दिन कुछ बच्चे भी घायल हुए थे, 4-17 साल की उम्र है उनकी, एक बच्ची के तो गले में अब भी गोली अटकी पड़ी है।

नक्सलियों ने एक बयान में कहा कि मरने वालों में सात में से पाँच गाँव वाले थे, दूसरी तरफ़ पुलिस का कहना है कि नक्सली ख़ुद को बचाने के लिए बच्चों/ गांववालों को आगे कर देते हैं ।

मैंने देखा है कि बस्तर में जब भी कुछ घटता है तो उसकी गूंज दिल्ली तक पहुँचती है, लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी के छोटे से नुक्कड़ में भी इसकी चर्चा नहीं होती, यहाँ किसी को कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ता । तब भी नहीं पड़ा था जब झीरम में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को नक्सलियों ने भून दिया था और प्रदेश में तीन दिन का शोक घोषित किया गया था ।

होगा रायपुर 250 किलोमीटर दूर बस्तर से, लेकिन बस्तर और वहां हो रही घटनाओं पर मुँह बनाते हुए कहना, “उफ़्फ़ फिर वही बस्तर, किसे पड़ी है वहाँ क्या हो रहा है, कौन पढ़ता है ऐसी ख़बरें”, “क्या बस्तर-बस्तर करते रहते हो”, ये उनकी तंगदिली और तंग नज़रिए की बात है ।

ये वही बस्तर है जहाँ बाहर से लोग आकर कहानियाँ लिखते हैं और नेशनल इंटरनेशनल अवार्ड जीतते हैं, क्यूंकि यहाँ के उनके अपने लोगों के लिए ये कुछ भी नहीं।

ये पोस्ट उन्हीं के लिए है जिन्हें ‘फ़र्क़ नहीं पड़ता “बस्तर” में क्या कुछ घट रहा है उससे’ ख़ासकर राजधानियों में रहने वालों के लिए, जो नक्सल खात्मे के एक-दो दिन के अंदर ही कारोबार की संभावनाएं तलाशते वहाँ पहुंचने वाले हैं। नक्सली और बेकसूर आदिवासियों की लाशों के ऊपर गिद्धों को नहीं मिलेगी मंडराने की जगह, भरा रहेगा खदानों के ऊपर का आसमान देश के बड़े-बड़े डैनों से, सबसे बड़े डैनों से ।