ऑपरेशन सिंदूर: दुनिया के सामने भारत की एकजुटता पेश करेंगे सांसद, पाकिस्तान को मिला करारा जवाब

जहां अक्सर संसद में सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहसें होती हैं, वहीं इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों ने एक सुर में सरकार के फैसले का समर्थन किया।

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  • Updated On - May 16, 2025 / 12:55 PM IST

नई दिल्ली:  पहलगाम में हुए कायरतापूर्ण आतंकी हमले का जवाब भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (Operation Sindoor) के ज़रिए निर्णायक अंदाज़ में दिया। इस कार्रवाई ने जहां पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को करारा संदेश दिया, वहीं भारत की राजनीति में एक दुर्लभ दृश्य भी सामने आया—संपूर्ण राजनीतिक एकता।

सूत्रों के अनुसार, भारत की संसद के सदस्य अब विदेश यात्रा पर जाकर इस ऑपरेशन और इसके पीछे की रणनीति को वैश्विक मंच पर साझा करेंगे। दुनिया को बताया जाएगा कि कैसे एक राष्ट्र ने एक स्वर में आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।

विपक्ष और सत्ता एक मंच पर

जहां अक्सर संसद में सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहसें होती हैं, वहीं इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों ने एक सुर में सरकार के फैसले का समर्थन किया। विचारधाराएं अलग हो सकती हैं, लेकिन जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा की आई, तो पूरा देश एकजुट दिखाई दिया। राजनीतिक दलों, धर्म और जाति की खाइयाँ क्षणभर में भर गईं।

सांसदों के वैश्विक दौरे की तैयारी

सूत्रों के अनुसार, संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू इस मिशन के समन्वयक होंगे। सभी दलों के सांसदों को विभिन्न देशों में भेजा जाएगा, जहां वे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पहलगाम हमले के जवाब में की गई कार्रवाई की विस्तृत जानकारी स्थानीय नेतृत्व को देंगे। यह दौरा 22 मई के बाद आरंभ होगा।

हर प्रतिनिधिमंडल में 5-6 सांसद शामिल होंगे, और इनका नेतृत्व वरिष्ठ सांसद करेंगे। अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, कतर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों का दौरा प्रस्तावित है। इन दौरों के ज़रिए भारत की ओर से एक सशक्त संदेश जाएगा—‘आतंकवाद पर भारत की कोई दो राय नहीं।’

सांसदों को भेजा गया निमंत्रण

सरकार ने सभी दलों को इस ऐतिहासिक पहल में भाग लेने का निमंत्रण भेजा है। इसका उद्देश्य केवल कूटनीतिक संबंधों को मज़बूत करना नहीं, बल्कि वैश्विक समुदाय को यह दिखाना है कि भारत आतंकी हमलों पर राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर एकजुट प्रतिक्रिया देता है।

इतिहास की पुनरावृत्ति

यह कोई पहला मौका नहीं है जब भारत ने वैश्विक मंच पर राजनीतिक एकता का परिचय दिया हो। 1990 के दशक में जब नरसिंह राव सरकार सत्ता में थी, तब संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे पर भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में विपक्षी प्रतिनिधिमंडल भेजा गया था। अब एक बार फिर इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है—लेकिन और अधिक संगठित, मुखर और वैश्विक स्वरूप में।