नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)। इंटरमिटेंट फास्टिंग (Intermittent fasting ) जिसे हिंदी में आंतरायिक उपवास कहते हैं दिल की बीमारी और डायबिटीज से जूझ रहे लोगों की मुश्किलों को काफी हद तक कम कर सकता है। एक अध्ययन के अनुसार, अपने भोजन में प्रतिदिन 10 घंटे का अंतर रखने से ब्लड शुगर को नियंत्रित किया जा सकता है।
दो वक्त के आहार के मध्य 10 घंटे का अंतर रखना, इंटरमिटेंट फास्टिंग का एक प्रकार है। ये आपके मेटाबॉलिक सिंड्रोम को मैनेज करने में भी मदद कर सकता है। अब ये मेटाबॉलिक सिंड्रोम क्या है? तो ये एक ऐसी मेडिकल स्थिति है जो आपको हृदय रोगी बना सकती है या फिर मधुमेह और स्ट्रोक का कारण बन सकती है।
सिंड्रोम के लिए जिम्मेदार जोखिम कारकों में हाई ब्लड शुगर, हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) और उच्च कोलेस्ट्रॉल शामिल हैं। और ये सभी प्रमुख कारक दिल के लिए ठीक नहीं होते।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो और अमेरिका में साल्क इंस्टीट्यूट के नेतृत्व में ये अध्ययन किया गया। शोधकर्ताओं ने कहा कि निष्कर्ष से उन लोगों की मदद हो सकती है जो अपने मेटाबॉलिक सिंड्रोम को लेकर फिक्रमंद हैं और टाइप 2 मधुमेह का जोखिम कम करना चाहते हैं।
ट्रायल स्टेज की रिपोर्ट, एनल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन में ऑनलाइन प्रकाशित की गई। रिपोर्ट के मुताबिक, मेटाबॉलिक सिंड्रोम वाले 108 वयस्क रोगियों को या तो समय-प्रतिबंधित आहार समूह और नियंत्रण समूह में विभाजित किया गया।
दोनों समूहों को तय मानक के मुताबिक ट्रीटमेंट दिया गया और इन्हें मेडिटेरियन डाईट (फल, सब्जी, फिश जैसा आहार ) के पोषक तत्वों के फायदे समझाए गए।
समय-प्रतिबंधित आहार लेने वाले समूह के प्रत्येक व्यक्ति को अपने खाने में 10 घंटे का अंतर रखना था, जो जागने के कम से कम एक घंटे बाद शुरू होता था और सोने से कम से कम तीन घंटे पहले समाप्त होता था।
तीन महीने बाद, जिन रोगियों ने समय-प्रतिबंधित आहार का नियमानुसार पालन किया उनमें हृदय स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया।
साल्क इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर सच्चिदानंद पांडा ने बताया कि दिन का समय मानव शरीर में शुगर और फैट की प्रोसेसिंग में अहम भूमिका निभाता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि इंटरमिटेंट फास्टिंग ने लोगों को शरीर का वजन कम करने, उचित बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) बनाए रखने और एब्डॉमिनल ट्रंक फैट (एक प्रकार का वसा जो मेटाबॉलिक डिजीज से जुड़ा है) को मैनेज करने में अहम भूमिका निभाई।